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________________ मयंकलेहाचरिय हा अंब ! तए पउमे ! माणुसमित्तं पि निययपुत्तस्स । पासे पेसिय किं न हि, दिट्ठो महवयणपज्जंतो ? ॥६४३।। हा ताय ! ताय ! रक्खियनियजायाचाय ! मज्झ पावेण । भणिओ वि नियसुएणं, वज्जाउ वि निठुरो जाओ ॥६४४॥ हा जणणि जणणि ! धूया दुहदलणि ! इमाए निययधूयाए । कज्जे तुम पि जाया, सिसुमारिमणाउ अहिंययरा ॥६४५।। हा भाय ! मज्झ हिययं, जं न वि सहसा सहस्स खंडेहिं । फुट्टइ तं तह बयणासासणमित्तस्स माहप्पं ॥६४६॥ हा विहि ! हयास ! विहिया, आजम्मं तित्तियाण दुक्खाए । तुमए निहाणमहयं, न जित्तिया जलहिकल्लोला ॥६४७॥ इय तीए रुयंतीए, रुयंति जलचारिणो जलस्संतो । गयणचरा गयणयले, थलम्मि थलचारिणो दहिया ॥६४८।। नियपुरिसमुहवियाणिय, तत्तो तत्थेव झत्ति संपत्तो । सत्थाहचित्तगुत्तो, तदुहदुहिओ इमं भणइ ॥६४९।। किं रुयसि भीरु ! तारं, कस्स व सुहयस्स कहसु दइयासि ? हे जामि ! जामि ! तुमए, सह तत्थ तमं भणसि जत्थ ॥६५०॥ तत्तो मणम्मि मणयं कयवीसंभा कहित्त नियचरियं । सा भणइ नेस बंधव ! अवंतिसेणस्स मं कडए ॥६५१॥ आमं ति भणिय तीए, सह सत्थे जाइ सत्थवाहो सो । कणइ पयाणे जामिं , तं कलदेविं व मनंतो ॥६५२॥ सा चित्तगुत्तपरियणविचित्तभत्तीहिं निययचित्तम्मि । जा चिट्ठइ सुहियमणा, ता जं जायं तयं सुणसु ॥६५३॥ सत्थाउ चित्तलेहा, इंधणजलकसमपउमकज्जेहिं । कहमवि दूरेण गया, दिट्ठा भिल्लेहिं हरिया य ॥६५४|| तत्तो पिच्छंतेणं, सव्वत्थ वि तेण सत्थवाहेण । कहमवि न वि सा दिट्ठा, जह धुवतारा दिणारंभे ॥६५५॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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