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मयंकलेहाचरियं
जो मह पत्तो तीमियगत्तो उव्वाइ तुज्झ नामेण । कह कहसु नियकरेणं, सो तुह अप्पिस्सए मुदं ? ॥६१७॥ न मुणइ वाससहस्से, चिंतंतो सुरगुरु वि जं कज्जं । तं कज्जं हा सहासा, सहसा इत्थी समप्पेइ ॥६१८।। ता जाहि जाहि सिग्धं, एरिस कुबहूण सासुया नाहं । तह ठाणदाणकज्जे, स च्चिय रंभा ससंरंभा ॥१९॥ इय जंपिय पउमाए, परिवायनिवारणाणि पुणरुत्तं । अवगन्निय सहिसहिया, गिहाउ निव्वासिया एसा ॥६२०॥ दइया विहियं कज्ज, सायरदत्तस्स अणुमयं चेव । अह नरवेसच्छन्ना, के वि नरा हंति नारीओ ॥६२१ ।। रंभा धणसाराणं, पेसियदासिं कहावियं तीए । एसा परिक्खिऊणं, धरियव्वा निययगेहम्मि ॥६२२॥ सा उण मयंकलेहा, पत्ता नियजणयभवणदारम्मि । धणसारपरियणेणं, पडिसिद्धा पुव्वभणिएणं ॥६२३॥ तं आगयं वियाणिय, धणंजओ नाम नंदणो तस्स । धनसारं पइ जंपइ, तुम पि मा चयसु नियधूयं ॥६२४॥ कडयाउ ताय ! सागरचंदो जा एइ तज्झ जामाऊ । छत्रा वा पयडा वा, ताव इमा धारिउं उचिया ॥२५॥ अइ दुहियं नियहियं, पउमावयणेण किं तुम मुयसि ? जणएण तए चत्ता, फुट्टियहियया धुवं मरिही ॥२६॥ सासू परिभूयाणं, धूयाणं ठाणमित्थ पिउगेहं । ता कुरु करुणं मा मा, निव्वाससु जेण जणओसि ॥६२७॥ इय भणिओ विसुएणं, धणसारो मुसियकज्जगयसारो । दुभिक्खे रंकं पिव, गिहाउ निव्वासए धूयं ॥६२८॥ जणयावमाणसयगुणदुक्खा मज्झं दिणम्मि सा बाला । अविरलगलंतनित्ता, सम्ममविनायपुरमग्गा ॥६२९॥
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