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मयंकलेहाचरियं
अह सो तियसो जंपइ, इमाइ दुक्खेण दुक्खिओ अहियं । मं मनावसि न मणसि, मयंकलेहाए दहनिवहं ॥५६५॥ भग्गु च्चिय अम्ह इमो, कलहो जह तह वि जेण तेणावि । जे अनोनं विरह, निमेसमित्तं पि न सहामो ॥५६६॥ वरिसाणि इक्कवीस, भत्ता रत्ता य जा तए चत्ता । सा विरहजलियदेहा, मयंकलेहा कहं होही ? ||५६७।। इय जंपिय नियदइयं, हत्थं उच्छंगसंगयं काउं । पिच्छंतम्मि कुमारे, उप्पइओ नहयले सहसा ॥५६८॥ अह किजरीए दासी, पयडा होऊण तं भणइ कुमरं । मज्झ महेणं तं पइ, जंपइ मह सामिणी एयं ॥५६९॥ तुह कयपडिकयमहयं, काउं नवरमम्हि निच्चदुल्ललिया । तह वि हु एवं ओसहिजुयलं गिण्हेसु अवियप्पं ॥५७०॥ एक्काए विहियकमतललेवो गच्छिहिसि गयणमग्गेणं । अवराए विहिय तिलओ, करेसि मणवंछियं एवं ॥५७१॥ इय भणिय नियत्ताए, तीए गिण्हित्तु ओसहीजुयलं । सो मंडलग्गमंडियहत्थो पत्तो नियं सिज्जं ॥५७२॥ सरिउं किन्नरचरियं, चिंतइ चित्तम्मि ते धुवं धना । जे सलिलमज्झरेहासमकोवा दिट्ठदोसा वि ॥५७३।। वज्जमयमाणसेणं, अदिट्ठदोसा वि दीहरोसेणं । जेण मए सा चत्ता, रेहा मह तस्स अहमेस ॥५७४॥ इय चिंतिय नियचिंतियमत्थं साहेइ निययमित्तस्स । सो आह साहु सपरिस ! साहु तए चिंतियं चित्ते ॥५७५।। इत्तिय दिणाणि एसा, निद्दोसा जं तए वि परिचत्ता ।। अज्ज ! वि न मरइ तं खलु, मन्ने तुह पुनमाहप्पं ॥५७६॥ न मरइ जाव वराई, जुज्जइ आसासिउं इमा ताव । अज्ज तए परिचत्ता, पाणेहिं चइस्सए नूनं ॥५७७॥
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