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________________ ४४ सव्वंगेसु निवेसियमुणालनवनालकमलसंघाया । घायच्छेयं पत्ता, कमसो वम्महकयंताणं ॥५५२॥ वारं वारं मुच्छं, गच्छंती झत्ति झत्ति चेयंती । पुणरुत्तं च दहंती, सासझलक्काहिं तरुनिवहं ॥ ५५३ ॥ सिसिराणिलसंगेण वि, सयगुणपज्जलियविरहदुहलणा । कलकलहंसरवेहि वि, तक्खणसंजायसवणजरा ॥५५४ ॥ हारं निच्छोडती झड त्ति गुरुदीहजीह - भारं व । निच्छियमरणारंभा, जियरंभा तेण सा दिट्ठा ॥ ५५५ ॥ दट्ठूण इमं सायरचंदो, पभणे सायरं मुद्धि ! । किं कज्जं परितम्मसि, दीससि मरणम्मि सारंभा ? ॥५५६ ॥ सा आह सुहय ! सो इह, नत्थि च्चिय भुवणमज्झयाम्म । दुहिएहिं निव्वरिज्जइ, जस्स पुरो निययदुहनिवहो ॥ ५५७ ॥ किं पुण तह तणुदसणसंभाविय - नियय - कज्ज - पब्भा । साहेमि मज्झ किन्नरदेवो हारप्पहो दइओ ॥ ५५८ ॥ अहयं पुण हारावलिनामा, पाणप्पिया पिया तस्स । गच्छंताणं गयणे, जाओ कलहो इमो अम्हं ॥ ५५९ ॥ सो आह अज्ज भामिणि ! इमम्मि कयलीहरम्मि रमियव्वं । भणियं मए सुरालयसिरम्मि पिय ! अज्ज रमियव्वं ॥ ५६० ॥ एवं विवयंताणं, सो रुट्ठो अवरित गयणाओ । इह चेव कयलिहरए परम् हो हविय पासुत्तो ॥५६१ ॥ तो मज्झ निसारंभ, आरंभिय विविहपत्थणसएहिं । दो जामाऽवक्कंता, तह वि हु न वि मनए एसो ॥ ५६२ ॥ दलइ व जलइ व चलइ व, हिययं मह सुहय ! तस्स विरहेणं । तो मनावसु मह पियमनह अहयं मरिस्सामि ॥५६३ ॥ गंतूण तत्थ कुमरो, सहिययहिययंगमाहिं वाणीहिं । 'अवहरिय रोसलेसं, करेइ हारप्पहं सहसा ॥५६४ ॥ Jain Education International 2010_04 सिरिषउमप्पहसामिचरियं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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