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मयंकलेहाचरियं
अरई अरुई सासा, रणरणओ अंतरंगपरिवारो ॥ अवरो उण परिवारो, मारो खारो व से जाओ ॥५१३॥ चंदणरसउच्चोडणकरेण विरहेण तीए दद्धाए । कहकह वि एक्कवीसं, वासा मुद्धाए वइकंता ॥५१४॥ राया अवंतिसेणो, लाडमहीनाहउवरिकडएण ।। चलिओ चलंतमयगल-गलंतमय-समियधूलिभरो ॥५१५॥ तइया इमेण रना, सायरदत्तो वि सायरं भणिओ । पट्ठवस मए सद्धिं, सायरचंदं नियं तणयं ॥५१६॥ को नाम सामपमुहं, नीइचउक्कं मुणेइ तं मुत्तुं ? । अहवा वि संधि-विग्गहपमहा सम्मं गुणा छच्च ॥५१७॥ पूरिज्ज व मह कडए, को वा कप्पूर-लवण-पज्जतं । सायरचंदं मुत्तुं बहुविहववरवत्थुवित्थारं ॥५१८॥ तस्सायरं वियाणिय, सायरदत्तो अणिच्छमाणो वि । जंपइ वच्चह तज्झे, सो एही विहिय सामग्गिं ॥५१९॥ एवं ति भणिय रन्ना, सहत्थ बीडयपयाणपुव्वं सो । विसज्जिओ स-गेहं, पत्तो आइसइ नियतणयं ॥५२०॥ सो जणय-वयणसमणंतरमेव समग्गकडयसामग्गिं । कारइ दहदियेहेहि, हक्कारइ सयल-मित्तगणं ॥५२१॥ विहियम्मि करह-सेरिह-हरि-वसह-कयाणगाइसंवाहे । सुमुहुत्ते से जणणी, भाले तिलयं कुणइ पउमा ॥५२२।। पत्थाणमंगलेसुं सायरचंदस्स किज्जमाणेसु । रेहावसेसदेहा, मयंकलेहा विचिंतेइ ॥५२३।। महिनाहसमाएसा, मह नाहो अज्ज वच्चिही कडए । पच्छा परम्महं पि हु, पिच्छिस्सं नेव नियदइयं ॥५२४॥ जम्मंतरकयदुक्कयमहिमाए परम्महो जइ. वि नाहो । सुविणंतरे वि तह वि हु, एसो च्चिय पिययमो मज्झ ॥५२५॥
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