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________________ ४० मित्तेण विरुद्धेणं सजणयपडिवन्नभंगभीएणं । वीवाहमहो तइया, सागरचंदेण न निसिद्धो ॥ ५०० ॥ गणयगणियम्मि लग्गे, दोहि वि वेवाहिएहिं विहिपुव्वं । अच्छरियकरो ताणं, वीवाह - महूसवो विहिओ ॥५०१ ॥ वित्ते दसाहियमहे, सायरचंदेण सायरं तिस्सा | सपसायं पासाओ, दिनो मुद्राए अइम्मो ||५०२ ॥ न कुणइ न सुणइ कहमवि वत्तं पि कहंतरेण पत्तं पि । सायरचंदो तिस्सा, वायहओ सक्कराइ व्व ॥ ५०३॥ दिट्ठीए न तं पिच्छइ, समीवपत्तं पि सतणुपुट्ठि व । तह नियदुच्चरियं पिव, पयडइ नामं पि नो तिस्सा ||५०४ || सा दुद्ध - मुद्धडमुही, पियचत्ता - विरह - दुक्ख - संतत्ता । स कयावराहलेसं, गवेसयंती गमइ दियहे ॥५०५॥ वामकर-कमलकोमलतलमिलियविरहपंडुरकवोला । नियपियसहिआसासणभासं पि हु नेव सुव्वंती ॥५०६ ॥ हिययत्थ-विरहहुयवहजाला विज्झावणाय अनवरयं बाहप्पबाहपूरं पूरंती नित्तजुयलेणं ॥ ५०७ ॥ जाणुजुयलंतराले, विणिवेसियमउलिपंकया निच्चं । सव्वं सहाए पुरओ, पवेसमग्गं व मग्गंती ॥५०८ ॥ परिचत्तपाण- भोयण - विलेवणा मज्झ तुच्छतरदेहा । पायं मरणोवायं, चिंतंती चिट्ठए मुद्धा ||५०९ ॥ उक्तं न सिरिपउमप्पहसामिचरियं जस्स कएण किसोयरि मोत्तूण तणं व जंति परएसं । जइ सो वि पिओ विमुहो, महिलाण हयं तओ जीयं ॥ ५१० ॥ निप्पंकयाणि सरसीजलाणि निक्कंदलाणि रन्नाणि । अवहरियसयलपल्लवलवाणि किंकिल्लि - गहणाणि ॥ ४११ ॥ तव्विरहसमण-कारणमीलणवावारवाउलो निच्चं । निम्मवs तीए सयगुणदुत्थावत्थो सहीसत्थो ॥५१२॥ जुयलं Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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