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हंसपालकहा
तस्स वरदंतदित्ती पिडं पिव सहइ मुहवत्थं ॥३८७।। मयरद्धयनरनाहो, दुद्धरतवखवियपावपन्भारं ।। कहिय जिनागमसारं, नमिउं चलिओ मुणिवरिदं ॥३८८॥ विनाय तयागमणो, बंधुररोमंचदंतुरसरीरो । सो नियपियाहिं सहिओ, वच्चइ मुणिनाहनमणत्थं ॥३८९॥ पणमित्तु निविट्ठाणं, मयंकपमुहाण महुरसंरावो । संसारासारत्तं, कहेइ गुणसायरो सूरी ॥३९०॥ कज्जम्मि जस्स किज्जइ, आजम्मं विविहपावसंभारो । सो चेव अहो ! देहो, वत्तं न कहेइ विहतो २९१ ।। सत्तुत्तरसयमम्मे, अठुत्तरवाहिसयसमाइन्ने सट्ठिसयसंधिबंधे, को पडिबंधो सरिरम्मि ॥३९२।। तह हंति देहमज्झे, सिराउ (सहरणिनामधिज्जाओ । नाभिपभवाउ सीसं, संपत्ताउ सयं सढें ॥३९३॥ ताण सिराणमवग्गहविघायभावम्मि होइ जह सखं । झ त्ति उवग्गह-घाया, सुय-चक्खू-घाण-जीहाणं ॥३९४|| तह अन्नं सट्ठसयं, इमम्मि देहम्मि नाभिपभवाणं । पायतलमुवगयाणं, पन्नत्तं वीयरागेहिं ॥३९५॥ ताणमणुग्गहभावे, जंघाण बलं हवेइ अइविउलं । उवघाए अंधत्तं, हवइ सिरोवेयणा तह य ॥३९६।। तह नाहिप्पभवाओ सट्ठिसयं होइ गुदपविट्ठाओ । वाऊमुत्त-पुरीसं, पवत्तए उग्गहे तेसिं ॥३९७॥ उवघाए पुण अरिसा, पंडुररोगा य वेगघाओ य । तह अन्नं सट्ठसय, सिराण तिरियंगयाणं च ॥३९८॥ अविघाए बाहुबलं, कुच्छीवियणा य ताण घायम्मि । पणवीसं पित्तधरा, पणवीसं सिंभधरणीओ ॥३९९॥ दससक्कधरा एवं, सिराउ परिसस्स हंति सत्त सया । इत्थीण तीस हीणा, य वीस हीणा य संढस्स ॥४००॥
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