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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
चक्खुद्दोसभएणं, इमाउ अबलाउ हंत ! भन्नति । तत्तेण इमाहितो, मने बलवं धुवं नन्नो ॥३७४॥ पउमावई पयंपइ, नरेसरो कहसु मज्झ दुहियाए । भत्तारविरहियाए, को नाम गई हवउ इण्हिं ? ||३७५।। सा हे नरेसर ! परिणीया जा मए मयंकेण । सा परिणीया जम्हा, हिययत्थो चेव मह नाहो ॥३७६।। नियदेहवननिज्जियहिरव्ररेहा हिरव्ररेहा वि ।। हवउ मह नाह दइया, न विरुद्धं किं पि नरनाह ! ॥३७७॥ तत्तो हिरनरेहा, दिना तस्सेव तीइ वयणेण । तिस्सा अन्नं पि पयं, रना दिन सयं चेव ॥३७८।। कित्तियमित्ते समए समइक्कंतम्मि तम्मि रोहियए । नियजणयविओगेणं, तत्तो विनवइ नरनाहं ॥३७९॥ मह विरहदुसहदुहभरनिब्भरभरियाण जणणि-जणयाण । हे सामि ! जामि मेलणकज्जे जइ होइ आएसो ॥३८०॥ तस्सायरं वियाणिय, दुहसायरकारणं पि तग्गमणं । आइसइ निवो जइ वा, वसंति पहिएहिं न हि देसा ॥३८१ ।। सत्थाहसहससहिओ, असंखसामंतमित्तसंजुत्तो । चलिओ नियपाणपिया, जुयलजुओ नियपुराभिमुहो ॥३८२॥ कल्लोललोल-हय-गयवरिओ सिरधरियधवलवरछत्तो । पविसइ पुरम्मि पुरजणमणनयणमहुसवायंतो ॥३८३ ।। पत्तो नियपासायं, पणमइ नियमाय-पाय-पायाणं । अंकम्मि तेहिं धरिओ, पहरिसजलपुवनयणेहिं ॥३८४॥ सो समुवज्जियविहवो, परोवयारं करेइ निरविक्खं । कारइ पडिमालक्खं, चउव्विहं पूयए संघं ॥३८५॥ अह आरामे अत्तारामो रामा-रमाइपरिहारी । निक्कारणमुवयारी सूरि मइसायरो पत्तो ॥३८६।। हिययत्थविमलकेवलजलनिहिडिंडीरपंडुपिंडेव ।
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