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वाचालकहा
सो विज्जाहरकन्नं, वीवाहियवाहिणीए परियरिओ || कयकिच्च विवराया, विणियत्तो निय पुराभिमुहं ॥ ४२२ ॥ नवरम्मपिम्मभिंभल-हिययाए तीए निय पुरे पत्तो ॥ विसयसुहं निरवज्जं, अणुहवइ सया महीनाहो || ४२३ || विज्जाहर- सयण - गणो, विम्हरिओ तीए रत्त-चित्ताए || रज्जं पुण नरवइणो, अणुरायमयस्स विम्हरियं ॥ ४२४ ।। दिणमिणमेसा रयणी, सयणजणो एस परजणो अहवा || अहयं नवाहमेयं, ताण मणो मुणइ न हि तइया ॥ ४२५ ॥ जीयस्स चंचलत्ता, ताण स- संपुन - पुत्र - माहप्पा || विहि-विलसिएण अहवा कित्तिय मित्ते गए काले ॥ ४२६ ॥ निरवज्ज - विज्ज - विज्जा - गज्जिर-हिययाण सयल - विज्जाणं ॥ पच्चक्खं सा तरुणी, संहरिया संनिवारणं ।। ४२७ ।।
अह रुवइ तारतारं, लज्जा मज्जा य वज्जिओ राया ॥ भामिणि - कामिणि - जीविय - सामिणि - मह देसु पडिवयणं ॥ ४२८ ॥ परिहर मोणं सुंदरि ! आलावं कुणसु नियय नाहस्स ॥ कलकंठि ! कंठदेसे, चिट्ठइ मह सयं जीयं ॥ ४२९ ।। तुझ निरिक्खणकज्जे, मन्ने चलिय व्व महइ मे पाणा ।। तामागच्छसु सग्गं, आगच्छसु धरसु मह जीयं ॥ ४३० ॥ एवं विलाव - वाउल - भूवाल - दुहेण दुक्खिए लोए ॥ मंतीहि तीए देहो, विहिणा सक्कारिओ जलणे ॥ ४३१ ॥ परिहरिय सव्वकज्जो, सम्ममविन्नायवत्थु - परमत्थो || राया उण अणवरयं, गहिलत्तं पयडिए विविहं ॥ ४३२ ॥ तो य तत्थ एगो, जूयारो दारवासिणी भवणे || हारइ असंखवारे, घरसारं चीर - पज्जंतं ॥ ४३३॥ सो अवरमुवायंतरमनिरिक्खंतो नरेसरं गहिलं ॥ कलिऊण कूडबुद्धी, पत्तो पडिहार - भूमीए ॥ ४३४ ॥
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