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महापउमकुमरकहा
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सक्को वि सुहम्माए, तुमं पसंसेइ जह महापउमो ।। सहयारमंजरीए, न रमइ रमणि कहवि अन्नं ।। ३७२ ।। हरिगिरमसद्दहंतो हं पुप्फावचूलवरनामो ।। इह पत्तो नरसेहर! तुह नियमपमाणगहणत्थं ॥ ३७३ ।। काऊण हरिणरूवं, अभिरूवं झत्ति तुज्झ तो दइया ॥ हरिया तइया इह तुह, आणयणत्थं मए चेव ॥ ३७४ ।। दटुं विरहदवानलजालामाला करालियं तुमयं ।। पंचालियागएणं, कया परिक्खा मए तुज्झ ।। ३७५ ।। कुमरो जंपइ हरिणो नव नव अच्छरियहरियहिययस्स ।। को पत्थाओ जाओ मज्झ पसंसाए तुच्छस्स ॥ ३७६ ।। तत्तो जंपइ तियसो, कुवलयदललोललोयणा मज्झ ।। पंकयकेसरगोरी, गोरी नामेण अत्थि पिया ।। ३७७ ।। नयतरुकाणणभंजण-पभंजणेणं पभंजणसुरेणं ॥ हरियहियएण हरिया, दइया सा मज्झ मूढेण ।। ३७८ ।। सो पावो रायंधो, निब्मरनिरयंधयारसारिच्छे ।। पविसेइ अंधयारे, तं गिण्हिय किण्हराइए ।। ३७९ ॥ विनाय वइयरेणं, हरिणा पविणा समाहओ गाढं ।। मुच्छानिमीलियच्छो, अच्छइ सो जाव छम्मासा ॥ ३८० ।। मह चेव समप्पित्ता, गोरि हरिणापयं पियं एयं ।।। अहह अहो सुरलोओ विगुप्पए कामरायंधो ।। ३८१ ।। धन्ना धीरा मणुया अतुच्छरायाहिं अच्छराहिं पि ।। अत्थिज्जंता विसयं, कह वि न भंजंति निय नियमं ॥ ३८२ ।। पत्थावे एत्थ मए, भणियं को सामि ! अत्थि सो मणुओ? ॥ जो नवि भंजइ नियम, तो हरिणा कुमर ! तं कहिओ ।। ३८३ ।। इय जंपिरेण तेणं, सुरेण सहयारमंजरी पयडा ।। काउं पुलइयतणुणो, समप्पिया तस्स कुमरस्स ।। ३८४ ।।
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