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________________ ४१८ सिरिपउमप्पहसामिचरियं किरणगणदिप्पमाणे, रयणविमाणे सुरेण निम्मवए ।। आरूढो तो कुमरो, स पिओ वच्चइ निय नयरे ।। ३८५ ।। निब्भरसोयं लोयं, रायप्पमुहं पहिट्ठमुह-कमलं ।।। निय दंसणेण कुमरो, कुव्वंतो विसइ निय नयरे ॥ ३८६ ।। विनायवइयरेणं, रन्ना सह तेण पवरतियसेण ।। रज्जाभिसेणमहिमा, विहिओ तस्सेव कुमरस्स ।। ३८७ ।। कुमरेण अणुनाओ, वच्चइ तियसो नियम्मि ठाणम्मि ।। राया गिण्हइ दिक्खं, सिक्खिय सिक्खं गओ मोक्खं ॥ ३८८ ॥ कुमरो वि जायपच्चयनिच्चलचित्तो कलंकपरिचत्तं ।। संमत्तं सेसाणि वि वयाणि पालेइ सव्वाणि ।। ३८९ ।। सहयारमंजरीए सह गिहिधम्म समग्गमवि सम्मं ।। परिपालिय सो पत्तो, सग्गं कमसोऽपवग्गं च ।। ३९० ॥ भोगोवभोगनियमो, जहा महापउमनाहकुमरेण ।। निच्चलमणेण विहिओ तह अन्नेहिं विहेयव्यो ।। ३९१ ।। ॥ इति भोगोपभोगवते महापद्मकथा ।। गाथा ५८२० अनत्थदंडे वाचाल कहा जं देह-गेहकज्जे, पावं गिहिणो कुणंति परलोए । तमणत्थदायगं पि हु इहत्थजुत्तं परूविति ॥ ३९२ ॥ जं पुण निरत्थयं चिय, कुणंति पावोवएसदाणाई ॥ एयं अणत्थदंडं, परिहरणिज्जं जिणा बिंति ।। ३९३ ।। पावोवएसहिं सप्पयाण वज्झाण बहुपमाएहि ।। चउहा अणत्थदंडं, अणत्थहेऊ विवज्जिज्जा ।। ३९४ ।। वसहे दमेह खेत्तं ववेह संढं करेह निय तुरियं ।। दक्खिनविसयवज्जं, इच्चाइ चइज्ज उवएसं ।। ३९५ ।। हल-मुसल-अनल-जंगल-करवाल-घरट्टपमुहमहिगरणं ।। दक्खिन्न मुत्तूणं न समप्पिज्जा दयानिरओ ॥ ३९६ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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