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________________ महापउमकुमरकहा ४१५ सो तत्थेव पसुत्तो, संतत्तो विरहजलणजालाए । उव्वत्तण परियत्तण-सएहिं निग्गमइ दिणसेसं ॥ ३४६ ॥ एत्थंतरम्मि तरणीनहपहपरिवहणखिन्नदेहाण ।। नियवाहाणं परिसमसमणत्थं जलहिमणुपत्तो ।। ३४७ ।। मित्तेण वि सुरेण वि न मए कुमरस्स दुक्खमवहरियं ।। इय चिंतिउं व एसो, झंपावइ जलहिमज्झम्मि ॥ ३४८ ।। अह अवरदिसिविभाए, संझाजलणो जलेइ अहिययरं ।। तस्स कुमरस्स हियए, निय दइया विरहजलणो व्व ॥ ३४९ ।। निब्भरतमलहरीए गलियं भुवणोयरं असेसं पि ।। कुमरस्स माणसं पिव विगया संझ त्ति संजायं ॥ ३५० ।। रयणमयमत्तवारणगयस्स एयस्स जामिणी समए । वज्जानलदुव्वियसहं सयग्गुणं तं दुहं जायं ।। ३५१॥ दीहरनीसासेहि, खंभनिविट्ठाण रयणमइयाण ।। पंचालियाण माणण-निवहं एसो कुणइ अंधं ।। ३५२ ।। अइसंतत्तसिलायलउव्विल्लिरचलवलंतनउलो व्व ।। उवत्तण परियत्तण-सहस्समेसो कुणइ सहसा ॥ ३५३ ।। रूवं निरूवणिज्जं, अणन्नसामन्नपुनलायन्नं ।। नव्वं जोयणलच्छि, नियच्छिउं तस्स कुमरस्स ।। ३५४ ।। एगा खंभनिविट्ठा, सपाडिहेरा चइत्तु तं खंभं ।। वरपउमरायमइया पुत्तलिया एइ तप्पासे ।। ३५५ ।। सा विहियदिव्वरूवा, जंपइ हे सुहय ! तुज्झ रूवेण ।। अभिरूवेणं हरियं मह हिययं दिट्टमित्तेण ॥ ३५६ ॥ सुमिणे वि जीए दंसणमइदुलहं सा वि तुज्झ कमलच्छी ! ।। पायालकनयाहिं, सयमेव सयंवरा पत्ता ॥ ३५७ ।। पविसंति विवरमज्झे, भीममसाणम्मि घोरतरमंतं ।। साहंति जीए कज्जे, सा तुज्झ सयंवरा अहयं ।। ३५८ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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