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गंतूण दूरसं, कुमारदइयं हरित्तु तुह एसो ॥ वच्चेमि त्ति वयंतो, सहसा अद्दंसणं पत्तो ॥ ३३३ ॥ पिययमनियंतो कुमरो उक्खयचक्खु व्व हरिय जीउ व्व ॥ मुच्छामिलियच्छिफुडो, झड त्ति पडिओ महीवीढे ॥ ३३४ ॥ खणमित्तेणं काणणसमीरणासंगपत्तचेयन्नो ||
विलवेइ तारतारं, सुमरिय सुमरिय निय दइयं ॥ ३३५ ॥ हा पुन्नकप्पपायवमंजरिसहयारमंजरि मए तं ।। रूवजिय तियससुंदरि ! खामोयरि कत्थ दट्ठव्वा ॥ ३३६ ॥ तं हसियं तं वसियं तं तसियं विलसियं च तं रसियं ॥ तं वियसियमुद्धसियंवरो रुहा कत्थ पिच्छिस्सं ? ॥ ३३७ ॥ तं भमियं तं रमियं, चंकमियं तह महंकवीसमीयं ॥ तं विरहे उत्तमियं सुमरणं सरणं महं जायं ॥ ३३८ ॥ इच्चाइ विलविऊणं, सरवरकंतार - सिहरिसरियासु ॥ सहयारमंजरिं सो, पिच्छंतो भमइ भमरो व्व ॥ ३३९ ॥ रत्तासोयं पिच्छिय जंपइ रे चोर ! जं असोओ सि ॥ रत्तोसि यता मन्ने, दइया गहिया तए चेव ॥ ३४० ॥ अनिलचलकमलमेसो, पिच्छिय जंपेइ पत्तनित्तेहिं ॥ चलिरे हिअरे कंपिरदइया चोरो त्ति नाओसि ॥ ३४१ ॥ इच्चाइ गहिलवावारदत्तचित्तो अन्नमज्झम्मि ॥ भमिरो वि तीइ सुद्धि, न लहइ रिद्धिं च अनयपरो ॥ ३४२ ॥ सो कसो गच्छंतो, मोत्तिय - सत्थिय - पसत्थभवणाए || सेयविया नयरीए, परिसरदेसम्मि संपत्तो ॥ ३४३ ॥ तत्थ य सरियातीरे, निच्चं चिय सव्व पच्चयवराए ॥ कालीए दारवासिणि देवीए अत्थि मणिभवणं ॥ ३४४ ॥ कुमरो परिब्भमंतो, पत्तो तं चैव देवया भवणं ॥ उवविसइ परिस्संतो, मणि- निम्मिय- मत्तवारणए । ३४५ ॥
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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