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________________ महापउमकुमरकहा ४११ दिवसंतरम्मि कुमरं, पडिहारो विनवेइ तुह नयरे ॥ सामिय ! अचिंतणिज्जं, अच्छरियं अज्ज संजायं ॥ २९४ ।। देसंतराओ को वि हु विहु व्व नीसेसजणमणाणंदो । निय वण्णजियसुवण्णो खण्ण लायण्णसंपुण्णो ॥ २९५ ।। रूवविणिज्जियमारो, देवकुमारो व्व धरणि-मणुपत्तो ।। पत्तो इहेव नयरे, तरुणनरो तरुणि-मण-हरणो ।। २९६ ।। वीणाविणोयपमुहं, कलाकलावं च पायडंतेण ।। तरुणीण य तरुणाण य तेणं चित्ताणि हरियाणि ।। २९७ ।। अभिरूवतरं रूवं, निरूविउं सो नियम्मि पासाए । अब्भत्थिय सप्पणयं नीओ एगाइ तरुणीए ।। २९८ ॥ संपज्जंतसमीहियकज्जो नयरम्मि पेम्महरियाए ।। सह तीए विसयसुहं, चत्तदुहं निच्चमणुहवइ ।। २९९ ॥ मासम्मि वइक्कंते, कह वि हु तम्मंदिराओ नीहरिओ। अवराए तरुणीए, अब्भत्थिय नियगिहे नीओ ॥ ३०० ॥ तह तीए तस्स हिययं हरियं सम्माण-दाण-भोएहिं ।। जह सा पुव्वा रमणी निब्भरनेहा वि विम्हरिया ।। ३०१ ॥ सा पुण पुव्वा रमणी, तमपेच्छंती रहंगघरणि व्व ।। तारं विलवइ तरलं , पिच्छइ मन्नइ जयं सुन्नं ॥ ३०२ ।। विनाय वइयराए, तीए गंतूण तस्स भवणम्मि || तह विहिओ कलहो जह तियसा वि सविम्हया जाया ॥ ३०३ ।। मज्झ इमो मज्झ इमो, रमणो त्ति पयंपिराण रमणीणं ।। ताणं सो तरुणनरो, गच्छइ पुव्वाए गेहम्मि ।। ३०४ ।। अइ दुल्लहस्स अइवल्लहस्स पयाए विविहभंगीहिं ।। रमिऊण तस्स सीसं, च्छिनं मा होउ अवराए । ३०५ ।। वरकुसुम-वत्थ-भूसण-निवहेहिं पूइऊण पट्टवियं ॥ काऊण कणयथाले, सीसं अवराइ गेहम्मि ।। ३०६ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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