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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
गंतूण हरिसिएहि, तेहिं वि हरविक्कमस्स नरवइणो ।। धूया सहियस्स इमो, कहिओ कुमरस्स वुत्तंतो ।। २८१ ।। तत्तो कुलवुद्धाहिं, सहियण-सामंत-मंति-पमुहेहिं ।। सहिया सह निय धूया, सयंवरा पेसिया रन्ना ।। २८२ ।। रिउकुंजरनरवइणा, आगच्छंति वियाणिउं कन्नं ॥ पच्चोणीए तीस्सा, पट्टविया नियय सामंता ॥ २८३ ।। ऊसवपुव्वं पत्तं, एसा रिउकुंजरस्स आएसा ।। रोलंबरोलमुहले, निवसइ कुसुमायरुज्जाणे ।। २८४ ॥ सहयारमंजरीए सह निय कुमरेण तेण सुमुहुत्ते ।। रना अच्छेरकरो, वीवाहमहूसवो विहिओ ।। २८५ ।। रन्ना नियभंडारा, विहिया भरिया य मग्गणावसहा ।। वेवाहिएहि तेहिं, वीवाहविहिं कुणंतेण ॥ २८६ ।। विहिए दसाहिय महे, तीए नवोढाए रयणनिम्मविओ ॥ रिउकुंजरनरवइणा, पासाओ अप्पिओ रम्मो ।। २८७ ।। सामंत-मंति-पमुहा, नियम्मि नयरम्मि जंति कयकिच्चा ।। निद्धेण समं निद्धा, सा मुद्धा रमइ कुमरेण ।। २८८ ।। पत्तभवंतरदइया, असारसंसारगहिय सारा सा ।। निच्छियमसारयाए मन्नइ रंभे पि रंभं व ॥ २८९ ॥ चुंपालयसिहरगया, सह निय दइएण निच्चनिच्चंतो ।। अट्ठावयजूएणं गमइ निमेसं व दिण-निवहं ॥ २९० ॥ कुमरो वि हत्थिसिक्खं, न सिक्खए हत्थिमंथरगईए । निच्चमवहरियचित्तो, तीए नव पिम्मरम्माए ॥ २९१ ।। संखुहियखीरसायर-विलोल-कल्लोल-लोल-नयणाए ।। अक्खित्तमणो एसो, तरल-तुरंगेण वाहेइ ।। २९२ ॥ अवहरियमणो तीए, वम्महकोदंडसरिसभमुहाए । मनइ मणम्मि एसो उव्वियणिज्जं धणुहवेयं ।। २९३ ॥
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