________________
४०८
इय हरिणमिहुणचरियं फलहयलिहियं जणाण पयडंता ॥ सकरुणमहुरसरेणं, गायंति सवित्थरं लंखा ।। २५५ ॥ सोऊण इमं मुच्छानिमीलियच्छो धस त्ति धरणियले ॥ संजायजाइसरणो, पडिओ सो रायवरपुत्तो ।। २५६ ॥ चंदणरसच्छडाहिं, तह ससलिल-ताल- विंटवाएण ॥ अविगयमुच्छो पुच्छइ, रे लंखा ! कस्सिमं चरियं ? ॥ २५७ ॥ बिंति सामि ! सम्मं निसुणसु, नवफलिहरयणकयसालं ॥ सग्गावयारनयरं, इहत्थि सग्गं व अवयरियं ॥ २५८ ॥ दरियारिमत्तमायंगकुंभनिब्भेयकेसरिकिसोरो ॥ राया जहत्थ नामो, नयरे हरिविक्कमो तत्थ ।। २५९ ।। अकलंकसीलसाला ससंककर - नियर विमल - गुणमाला | नामेण कुसुममाला, पिया पियालाविणी तस्स ॥ २६० ॥ सुविणंतरम्मि एसा, सुरगिरिसिहरम्मि नंदणारामे ॥ सुरजणमणाभिरामे, पत्ता सयवत्त - पत्तच्छी || २६१ ॥ विदारएण केण वि, दिन्ना सहयारमंजरी तिस्सा ॥ खणमित्तेण विबुद्धा, पियपासे वच्चए मुद्धा ॥ २६२ ॥ हिम्मती सुविणयवुत्तंते दंतदित्तिभरियदिसो ॥ एसो जंपइ दुहिया रहिया दोसेहिं तुह होही || २६३ ॥ तस्स मयं चिय एसा गब्धं नीरं व हेमरिंच्छोली ॥ धारइ सयं निवारइ, नियगब्भाणुचियसलिलं पि ॥ २६४ ॥ सा समयम्मि पसूया धूया जाया निवेण कारवियं ॥ वद्धावणयं एसा, बहुपुत्ताणुवरि जायति ॥ २६५ ॥ सुहवार - तिहि - मुहुत्ते, रन्ना सुविणाणुसारओ तिस्सा || दिनं नामं एसा, हवेउ सहयारमंजरिया || २६६ ॥ उत्तमनरवित्ती विव, अहवा अवरण्हसमयछाय व्व ॥ सह नियजणणि-मणोहर - निवहेहिं वनए एसा ॥ २६७ ॥
Jain Education International 2010_04
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org