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संखकुमारकहा
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• जुंजइ जोई तह वि हु न इमा अहिलसइ नरनाहं ॥ १६७ ॥ ता जइ नियदइयाए, कज्जं आरुहसु तो इमं हंसं ॥ हत्थं चिय गच्छामो, जेण वयं तत्थ नयरम्मि ॥ १६८ ॥ कुमरोजंप कित्तिय मित्ते दूरम्मि तं पुरं एसो || आह इमाउ नगाओ, तं जोयणसयचउक्केण ॥ १६९ ॥ जित्तिय मित्तो कालो, निम्मेस उम्मेस- अंतरालम्मि ॥ तित्तिय कालेण तुमं हंसगओ तत्थ वच्चिहसि ॥ १७० ॥ सो आह सच्चमेयं, किं पुण मह अत्थि चउसु वि दिसासु ॥ जोयणसयदुगअहिए, गमेण गुरु सक्खिओ नियमो ॥ १७१ ॥ अज्जं वा कल्लं वा भज्जा जीवंतयस्स मह मिलिही ॥ सयमेव भग्गनियमो न कह वि मिलिही जुगंते वि ॥ १७२ ॥ धणजणणिजणयचाओ अहव पियाए हविज्ज परिहारो ॥ देहं पि दहउ विरहो तह वि न भंजेमि नियनियमं ॥ १७३ ॥ वज्जरइ निउणबुद्धी, तसाइ - संमद्दवज्जणनिमित्तं ॥ किज्जइदिसिपरिमाणं, वज्जिज्जइ अहियंदिसिगमणं ॥ १७४ ॥ न हि नहयलगमणेणं, कस्स वि जीवस्स होइ संहारो || तम्हा विहियवयस्स वि अविरुद्धं तुज्झ नहगमणं ॥ १७५ ॥ अहना अवर दिसाए, खिवित्तु जोयणसयाणि अह दोन्नि ॥ आगच्छसु तत्थ पुरे जइ तं नियपिययमं महसि ॥ १७६ ॥ सो आह हयलेण वि कयावि अप्पस्स अहव अन्नस्स ॥ अहवा वंछियनयरे, गयस्स संभवइ जीववहो । १७७ ॥ तह अवराइदिसाए, माणं पक्खिविय तत्थ गमणं जं ॥ ते धुवं अइयारो, हवइ विसुद्धस्स नियमस्स ॥ १७८ ॥ सो जंपइ जइ एवं, तो हं गंतूण तत्थ नयरम्मि || आमि तुज्झ भज्जं, जइ आएसं पयच्छेसि ॥ १७९ ॥ कुमरो जंपइ नाहं तुमं पि पेसेमि जेण एवं पि ॥
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