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पुट्ठो दंससु किंचि वि अच्छरियं अह इमो वयइ ॥ १५४॥ हरसिरजडाउगंगं, लच्छि लच्छीहरस्स वच्छाओ || आयच्छेमि नरेसर ! मणिनिवहं सेससीसाओ ।। १५५ ।। साहेमि दुसज्झं पि हु, अगम्ममवि जामि तिहुयणे सयले ॥ तं नत्थि जं न सहसा, करेमि मह कहसु मणइटुं ॥ १५६ ॥ रायसयासनिविट्ठो, भासइ वेहासिउ मए दिट्ठा | आरामे विलसंती, संखकुमरेण सह तरुणी ॥ १५७ ॥ सा इह आणेयव्वा तुमए जइ अत्थि का वि तुह सत्ती ॥ इय भणिओ सो जोई, झड त्ति झाणं कुणइ तत्थ ॥ १५८ ॥ खणमित्तेण निरंतररणज्झणायंतरयणमंजीरा || सुत्त विबुद्धा मुद्धा, नहमग्गेणं समणुपत्ता ।। १५९ ।। रन्ना ल्हसंतवसणा लुलंतचिहुरा तरंततरलच्छी || वरकुंभिकुंभसिहिणि, अदिट्ठपुव्वा इमा दिट्ठा ॥ १६० ॥ सव्वो वि पासदेसा, निग्गच्छइ नरवइस्स परिवारो ॥ ते चेव धुयं छेया, मुणंति जे कज्ज -परमत्थं ॥ १६१ ॥ अह आह महिनाहो, सुंदरि ! सुंदरपुरस्स राया हं ॥ मा मा मं अवगन्नसु, करेसु करभोरु ! मह भणियं ॥ १६२ ॥ सा जंपइ सयलपया सामिय ! तुह इह निसामियं वयणं ॥ पुणरुत्तं एवं चि मा भणिहसि नणु निसिद्धोसि ॥ १६३ ॥ निवडंतु सव्व सूरा सव्वे मुंचंतु जलहिणो मेरं || विचलंतु सव्व सेला सीलं भंजेमि न हि अहियं ॥ १६४ ॥ अह राया रायाउर-चित्तो चिंतेइ धुवमिमा मज्झ ॥ जोईसरवरसत्ती, माहप्पेणं वसे होहि ॥ १६५ ॥ एवं च चितइत्ता में आहविउं करावए भवणं ॥ सरसलिलमज्झ देसे, मुंचइ तत्थेव तं तरुणि ॥ १६६ ॥ अह निवउवरोहेणं, काउय संवरणणचुन्नबहुमंते |
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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