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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
सह विलसइ तत्थ इमो, अणंगसेणाए वेसाए ॥ १०३ ।। जंपइ चंपयसामिणि, देवि संभरसु भासियं निययं ।। सव्वं पि मएभिहियं समीहियं किं न विहियंति ।। १०४ ।। अह तस्स धुत्तचिट्ठिय रुट्ठा सा वाणमंतरी सहसा ।। अट्टहासपूरिय नहविवरा जंपए धुत्तं ॥ १०५ ।। रे धुत्त ! नियय धुत्तिमधुत्तिय नीसेस तियसनरविसर ! ।। पाविट्ठ धिट्ठ रे दुट्ठ ! होसि निक्किट्ठ न हु अज्ज ॥ १०६ ।। बहुदेस भमण-विन्नाण-गव्वसव्वस्स पच्चयं तुज्झ ।। चिर संचियं पि अज्जं, न एमि सयसिक्करं एसा ॥ १०७ । तो धुत्तं केसेसुं धरिऊण, पुरस्स मज्झयारम्मि । नेऊण तस्स चरियं साहइ सव्वं पि लोयाणं ।। १०८ ।। अहयं खलु निद्दोसा, एसो पावेउ निययपावफलं । इय भणिय तीए कत्थ वि पक्खित्तो झत्ति सो धुत्तो ।। १०९ ।। नाणाविहदेसाणं, भमणमकारणमणत्थसत्थाणं ।। धुत्तस्स धुवं जायं, निसुयमिणं संखकुमरेण ।। ११० ।। धणदत्तधणि-सुएणं, तत्तो सुरगुरु-गुरूण पयमूले ॥ दिसिपरिमाणं विहियं, दसदिसिमाणेण विच्छिन्नं ॥ १११ ॥ ससि-संख-कुंद-निम्मिलमणस्स अह तस्स संख-कुमरस्स ॥ परिगलइ को वि कालो, सम्मं धम्म करितस्स ।। ११२ ॥ एत्तो य तामलित्ती, निवासिणा रिसहदत्तवरवणिणा ।। कुमरस्स नियय कन्ना, दिन्ना नामेण रयणवई ।। ११३ ॥ ताणमणनमणाणं, निब्भरपडिबंध-बंधुरं जोगं ।। कलिउं नरनारिगणो, तं चिय मिहुणं पसंसेइ ॥ ११४ ।। निच्चं पि रम्मपिम्मा लीला लीला-निवास-सारिच्छा ।। सा तस्स हिययकमले, कमलालीलाइयं वहई । ११५ ॥ अह अत्थसिहरिसिहरं, पत्ते सहस त्ति सत्ततुरयम्मि ।।
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