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संखकुमारकहा
धुत्तं गवेसयंतो, तुममेव धरिस्सए नूणं ॥ ६४ ॥ सरसलिलमज्झ देसे, इमम्मि नट्ठम्मि सो महाधुत्तो ।। तत्थेव खरं मोत्तुं, चलिओ पुरसंमुहो सहसा ।। ६५ ।। इत्तो य महिनाहो, पुराउ नाऊण निग्गयं धुत्तं ।। बाहिं गवेसयंतो, आगच्छइ सम्मुहो तस्स ।। ६६ ।। रना पुट्ठो, दिट्ठो, को वि हु पुरिसो सगद्दहो तुमए ।। धुत्तो जंपइ चिट्ठइ, नट्ठो सर-सलिल-मज्झम्मि ।। ६७ ॥ रना भणियं तुरियं, इमं धरेज्जासु जेण केसेसु ।। गहिऊण सरवराओ हत्थं कड्डेमि तं धुत्तं ।। ६८ ॥ आमं ति तेण भणिए, राया जा विसइ सलिलमज्झम्मि । ता तुरयमारुहित्ता, चलिओ धुत्तो पुराभिमुहं ॥ ६९ ।। पविसित्तु जामइल्लं, जंपइ बंधेसु पउलिदाराणि ।। 'मा कस्स वि प्पवेसं, दिज्जसु धुत्तो जओ निहओ ।। ७० ॥ तेना वि तह त्ति विहिए, नरनाहो सासभरियमुहविवरो । पत्तो पउलिद्दारे, जंपइ विहडेसु दाराणि ॥ ७१ ॥ पाहरिओ वि पयंपइ, तुरयारूढो नरेसरो मज्झ ।। चिट्ठइ तत्तो तुमयं, न होसि राया धुवं अन्नो ॥ ७२ ।। धुत्तो वि हयारूढो, पाहरियं चयइ मा हु दाराणि ।। उग्घाडसु धुवमित्तो, अन्नो धुत्तो इहं पत्तो ॥ ७३ ।। राया विलक्ख-चित्तो, चिंतइ धुत्तेण धुत्तिओ अहयं ।। नूणं विजयपडाया, गहिया एएण धुत्तेण ।। ७४ ।। ता संपइ धुत्तं चिय सामगिराए भणेमि जेण इमो।। भणिऊण जामइल्लं, विहिडावइ पउलिदाराणि ।। ७५ ।। इय चिंतिय नरनाहो, जंपइ हे धुत्त ! धुत्तिया पुहई ।। तुम पच्चिय ता तुट्ठो, वरसु वरं कमवि मणइटुं ।। ७६ ॥ अह पायडिउं अप्पं, विहिडावइ झत्ति पउलिदाराणि ।।
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