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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
छिनो त्ति तओ स्ना भणिया वेसा किमेयं ति ? ॥ ५१ ।। अह सा सयलसहाए परिहसिया जाइ निययगेहम्मि । तो कुणइ रायरजओ पइन्नमइ-कूडकवडनिही ।। ५२ ।। धुत्तो वि तस्स गेहे, संज्झा समयम्मि वयइ तेणावि ।। पुट्ठो जंपइ अहयं, कलिंगदेसाओ संपत्तो ॥ ५३ ।। जो मं नियए गेहे, वंठं धारेइ तस्स गेहम्मि ।। चिट्ठामि रंजिएणं, रजएणं धारिओ तत्तो ।। ५४ ।। वेणकलाकुसलेणं, पक्खालिंतेण विविहवत्थाणि।। हरिऊण तस्स हिययं, एसो वीसासिओ कमसो ।। ५५ ॥ सुत्तम्मि तम्मि रन्नो, पहाणचीराणि तस्स गेहाओ ।। हरिऊण महाधुत्तो, पत्तो थेराए गेहम्मि ।। ५६ ॥ जामिणि-विराम-समए, हसिओ रयगो वि सव्वलोएण ।। रना कया पइन्ना, तत्तो धुत्तस्स गहणत्थं ।। ५७ ।। आरक्खियं पयंपइ, राया बंधेसु पउलि-दाराणि ।। मा निग्गमप्पवेसं, कस्सवि दिज्जासु निसिसमए ।। ५८ ।। सयमेव निवो तत्तो, तुरयारूढो भमेइ सव्वत्थ ।। धुत्तं गवेसयंतो, पउलीदारेइ ठाणेसं ।। ५९ ॥ धुत्तो उण खरपिटे, आरोविय पवरवत्थसंदोहं ।। होऊण रयगरूवो, वच्चइ पउलीदुवारम्मि ॥ ६० ॥ जंपेइ जामइल्लं, उग्घाडसु झत्ति पउलि-दाराणि ।। सो जंपइ पडिसिद्धं, दाराणुग्घाडणं रना ।। ६१ ।। धुत्तो जंपइ रनो, इमाणि चीराणि जइ विणस्संति॥ तत्तो निवस्स पुरओ तुमए पच्चुत्तरं कज्जं ॥ ६२॥ भीएण तेण दाराणि, झत्ति उग्घाडियाणि पउलीए । निग्गच्छइ सो धुत्तो गच्छइ सरपालिसिहरम्मि ।। ६३ ।। जंपइ मच्छियमेगं नाससु रे मूढ ! एइ नरनाहो ।।
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