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हसपालकहा
तह सुह-सउणपयासयसमुहागयदहियपिंडसारिच्छे । हिंडिर-पंड-पिंडे, दिसिदिसि वित्थारए एसो ॥१५१॥ अविलक्खिय परवारं, कुवलयदलसामसलिलसंभार । पारावारं पिच्छिय सत्थाहो चिंतए चित्ते ॥१५२॥ दो वि तमालदलाभा दो, वि हु विसकक्कमीणमयरजुया । दो वि विसाला मिलिया, सहति नह-जलहिणो सरिसा ॥१५३।। उवरि कज्जलसामलगयणमहो पिच्छिऊण जलरासिं । नज्जइ नहस्स जलही, पडिबिंबमिमस्स वा गयणं ॥१५४|| सो आरूढो सहसा, पिल्लावइ पवहणाणि सव्वाणि । घण-पवन-नयण-माणस-विहिगाहिवविजयिवेगेण ॥१५५॥ पंजरमुक्को पारेवउ व्व बाणो व्व धणुहपरिमुक्को । पवहणनिवहो वच्चइ, मयंकमणपाडिसिद्धीए ॥१५६॥ दीवंतराणि सेलंतराणि वेलाउलाणि विविहाणि । मुंचेइ वहणनिवहो, पडिवनं दुज्जणजणु व्व ॥१५७।। दुग्गं पि जलहिसलिलं, धीरो वसणंतराणि वहणाणि । लंघित्ता समएणं, रक्खसदीवम्मि पत्ताणि ॥१५८।। वहणाणि नंगरित्ता इंधण-जल-जवसगहणकज्जम्मि । सव्वो वि किलिकिलंतो, वहणजणो झ त्ति उत्तरइ ॥१५९॥ पउमावई पयंपइ, मणहरवणराइराइयं रम्मं ।। अच्छरियसयाइनं दंसस मह नाह ! दीवमिणं ॥१६०॥ वियसियमुहसयवत्तो, कुवलयदलदीहरच्छि-पत्ताए । पउमावईए सहिउ, उत्तरइ इमो पवहणाओ ॥१६१॥ गिरि-सर-सरिया-काणण-पयासणा वाउलो सयं चेव । तिस्सा विदिन्नबाहो, सत्थाहो भमइ दीवम्मि ॥१६२।। एगत्थ तिलय-ताली-तमाल-वंजुल-पियालिपरिकलियं । कयली-लवली-मालइ-नव-मालइ-बउलसंच्छन्नं ॥१६३।।
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