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संखकुमारकहा
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इत्तो यसोरियपुरम्मि को वि हु, धुत्तो देसंतराउ संपत्तो ।। गंतूण वणियहट्टे, जंपइ मह देहि घय-पमुहं ॥ १३॥ उप्पाडिया य तेणं, हट्टे घय-दालि-सालिपमुहेहिं॥ दो टंका तं वणियं जंपइ पेसेसु नियपुत्तं ।। १४ ।। दावेमि जेण लब्भंति भणिय गिण्हित्तु तस्स सो पुत्तं ।। गंतुं दोसिय हट्टे, गिण्हिइ चीराणि रम्माणि ॥ १५ ॥ जंपइ दोसियवणियं मह पुत्तो एस तुज्झ पासम्मि ।। चिट्ठिस्सइ अहयं पुण वच्छे ! दावित्तु घरिणीए ।। १६ ॥ हत्थं आगच्छिस्संतो, गंतुं चंडिलस्स सालाए । छिंदावइ नहनिवहं, जंपइ पट्ठवसु निय भज्जं ॥ १७ ॥ दावेमि जेण दव्वं, गंतुं तंबोलियाण हट्टम्मि ।। गिण्हइ पत्तसमूह, जंपइ एसा महं भज्जा ।। १८ ।। तुह पासे चिट्ठिस्सइ, खणमित्तं गिहिऊण तुह दव्वं ॥ जाव समेमि तओ सो पत्तो थेराए गेहम्मि ।। १९ ॥ कय पणिवाओ जंपइ तुहंगजाओम्हि अंब ! तह मह तं ।। माया सि एस बंधुरपडिबंधो हवउ आजम्मं ॥ २० ॥ एवं ति तीए भणिए, अप्पइ चीराणि पत्त-संदोहं ॥ सेच्छाए तीए गेहे, चिट्ठइ सो निच्च निच्चंतो ।। २१ ॥ अह सालिदालिवणिओ गवेसमाणो सुयं नियं पत्तो ।। दोसियहट्टे जंपइ हत्थं उढेसु रे वच्छ ! ।। २२ ।। दोसियवणिओ पभणइ, इमस्स जणएण मज्झ चीराणि ।। गहियाणि तओ दव्वं, दाऊण इमो वयउ इण्हि ॥ २३ ॥ जाओ ताण विवाओ, चंडिल-तंबोलियाण एवं पि ।। भज्जा कज्जे कलहो, केण वि सिटुं महीवइणो । २४ ।। रना समाहवित्ता भणिओ आरक्खिओ अरे धुत्तं ।।
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