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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
चउत्थ-पत्थावो दिसिपरिमाणवए संखकुमारकहाः इहलोए परलोए, धणियं गुण-निवहं कारणत्तेण ।। तिन्नेव गुणवयाई, पन्नत्ताई जिणिदेहिं ॥ १ ॥
आहिंडण चाएणं अच्छऽच्छाहार वज्जेणेणं च ॥ तहणत्थदंडचाएण, ताणि कुव्वंति गुण-निवहं ।। २ ।। दिसिपरिमाणं पढम, बिईयं भोगोवभोगपरिमाणं तहणत्थदंडचाओ गुणव्वयं तइयमक्खायं ।। ३ ॥ पुव्वाइ-दसदिसासुं गिहिणो माणं कुणंति जं तत्थ । दिसिपरिमाणं पढमं गुणव्वयं तं जिणा बिंति ।। ४ ।। लोभारंभय सन्नानय दिसिमाणं कुणंति जे मूढा ॥ आरंभे ताण मणो, निरग्गलं भमइ भुवणम्मि ॥ ५ ॥ जह बंधे पक्खित्ते, विसमं विसहरविसं पि न हि उड़े ।। कमइ तहा दिसिमाणे, विहिए जीवस्स आरंभो ॥६॥ तत्ताय पिंडभावे, गिहिभावे जेसि परिमियं खित्तं ।। पसरंतलोहजलही, परमियपाओ फुडं तेसिं ।। ७ ।। उड्व-अहो-तिरिय-दिसा-परिमाणवइक्कमम्मि खित्तस्स ।। वुड्डीए सइभंसे, हवंति इह पंच अइयारा ॥ ८ ॥ सचराचरजीवाणं, रक्खत्थं जो करेइ दिसिमाणं ।। मणवंच्छियलच्छीओ सो पावइ संखकुमरो व्व ।। ९ ।। भुवण-निहाण-निहाणं, इहत्थि भुवणावयंससारिच्छं । भुवणावयंस नामं, मणिमयभवणं पुरं भरहे ।। १० ।। नियमइमाहप्पेणं, अवलोइयभुवणवलयवित्थारो ॥ भुवणावलोयराया, तत्थ पुरे पालए रज्जं ॥ ११ ॥ हरिणंक-किरण-निम्मल-सीला-लीलाए विजियरइ रूवा ॥ सोहग्गभग्गगोरी, तस्स पिया भवणलच्छि त्ति ।। १२ ।।
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