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रयणसारकहा
नयरस्स रम्याए, अक्खित्तो खिप्पमेव पुरमज्झे || पविसंतो पुरपरिसरसालगयाए य एगाए । २०१७ ॥ वरसारियाए भणिओ कुमारजइ महसि अप्पणो जीयं ॥ तामा विससु कह वि हु इमस्स नयरस्स मज्झमि ॥ २०१८ ॥ किं भणसि रम्ममेयं कहं पवेसस्स अणुचियं नयरं ॥ तंपि हु साहीज्जंतं, निसुणसु हे धीर ! उवउत्तो || २०१९ ॥ गोसीस - दारु-निम्मिय-पओलिदाराहिवासियसमीरे ॥ रयणपुरे एत्थ पुरे पुरंदरो आसि नरनाहो || २०२० ।। अत्थाणसहासीणस्स, तस्स रायस्स केण वि नरेण ॥ विन्नत्तं तुह नयरं मुसियं केणावि चोरेण ॥। २०२१ ।। अह तरुणतरणिकरणिं समुव्वहंतेण रोसरत्तेण ॥ रन्ना समाहवित्ता पुट्ठो आरक्खिओ वयइ || २०२२ ॥ देव ! न वि मज्झ सज्झो, न मज्झ सयणस्स नेव अन्नस्स ॥ सो चोरचक्कवट्टी, जं जाणसि तं कुणिज्जासु ॥ २०२३ ॥ सयमेव पुहइपालो निसाए करकलिय-निसिय-करवालो ॥ भमडइ चउक्कचच्चरसुन्नागाराइठाणेसु ॥। २०२४ ।। समयंतरम्मि नयरं च्छिन्नमविच्छिन्नमेव पिच्छंतो ॥ चोरं खत्तमुहाओ निग्गच्छंतं लहइ राया ॥। २०२५ ।। कोसि तुहं नरवइणा सो पुट्ठो वयइ वसणसंतत्तो ॥ अनिययपासंडधरो मुसेमि नयरं कुमुयनामो ॥ २०२६ ॥ परिकुविएणं रन्ना सूलाए चढाविओ इमो तत्तो ॥ दिव्ववसा मरिऊणं संजाओ रक्खसो घोरो ॥। २०२७ ।। कुद्धेण तेण सहसा, नयरे उव्वासियं असेसं पि ॥ जो अज्ज व पुरमज्झे, पविसइ तं हणइ निब्धंतं ॥ २०२८ ॥ अह सारियाए वयणं, अवगन्निय रयणसारकुमरो वि ॥ रक्खसविक्कमदंसण-स- कोउहल्लो विसइ मज्झे । २०२९ ॥
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