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मणिरयणवासभवणे सुत्तो सो नियपियाहि संजुत्तो ॥ कह विहु विगलियनिदो पंगणदेसम्म संपत्तो ॥ २००४ ॥ वर-मउड-मंडिय-सिरं वत्थत्थललुलिय- तरलतरहारं ॥ कयमणहर - सिंगारं, चलकुंडल - मंडियकवोलं ॥। २००५ ।। आयड्डिय करवालं, उब्भडभडभिउडिभंगुर - निडालं ॥ उद्धरतेयकरालं, सुरमेगं पिच्छए कुमरो || २००६ ॥ कोसि तुमं किं कज्जं, इह पत्तो कहसु कत्थ निवसेसि ? ॥ इय जा पुच्छइ कुमरो, ताव सुरो रोसरत्तच्छडो । २००७ ॥ रे अलिय गव्व - पव्वयकुमार निच्चं पि रे दुरायार ? | सच्चं सुहडोसि तुमं जइ तत्तो हवसु रणसज्जो || २००८ ॥ एयं पयंपमाणो, पयंड-पवणो व्व तूल-संघायं ॥ हरिऊण कीर-पंजरमुप्पइओ नहयले सहसा || २००९ ।। अणुसरमाणो सद्दं फुरंततेयं च तस्स तियसस्स ।। निक्किव - किवाण - पाणी कुमरो उद्धाइओ तत्तो । २०१० ।। सो हत्थं गच्छंतो मंदं मंदं पलोयमाणेण ||
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
धुत्तेण तेण नीओ सूरेण संतरं दूरं || २०११ ॥ नम्मितम्मितियसे परिभावइ सो मणम्मि को एसो ॥ देवो वा दाणवो वा नूणं मह वेरिओ को वि || २०१२ ।। भवउ व जं वा तं वा, न किंचि चित्ते जणेइ मह दुक्खं ॥ कीरेण तेण विरहा, दुसहो देहं दहइ नवरं ॥। २०१३ ॥ तह वि हु नयववसाया, कायव्वा चेव धीर - पुरिसेहिं ॥ सव्वं पि धुवं भव्वं होही ववसाय - नाहिं | २०१४ ॥ इय चितिय सो कुमरो कीरस्स गवेसणाय गच्छंतो ॥ दिवसंतरम्मि गच्छइ पुरओ पुरमेगमइरम्मं ॥। २०१५ ।। फालिहमणिपायारं, पडिपउलि- निविट्टरयणपडिहारं ॥ चित्तविचित्तायारं, मणिनिम्मिय-मणहर-विहारं || २०१६ || जुयलं
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