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________________ ३७६ सिरिपउमप्पहसामिचरियं रणिरमणिरयणघंटामणितासियदिसिगइंदसंदोहं ।। मरगयमणिमयतोरणकयदिसिमुहपत्तवल्लरीसोहं ॥ १९७८ ।। ससिकंतपमुहमणिमयविसालवरसालभंजिया निवहं ।। वेगावेगविणिज्जयसमीरमणबाणगरुडगुरुवेगं ॥ १९७९ ।। रम्मं विमाणसमुदयमारूढाहिं समाणवेसाहिं ।। पायालकन्नयाहिं, परियरिया चारुतारसोहाहिं ।। १९८० ॥ संवच्छरसयजीहा, सहस्स निज्जणणिज्ज महिमाणं ॥ आरूढा सुविमाणं, पत्ता चक्केसरी सयं तत्थ ।। १९८१ ।। सा नववहूवरेहिं , कय पणिवाया पयच्छए तेसिं । वरमासीसं तुब्भे नंदह सुहिया हवह निच्चं ॥ १९८२ ।। सुरसुंदरी मुहनिग्गयमंगलसंरावजणियरोमंचो । देवीए वित्थरेणं, वीवाहमहो कओ तेसिं ॥ १९८३ ।। मणिमयभूमिनिबद्धं मणनयणपसायकारणं दिव्वं ॥ विउरुव्विय पासायं., देवी तेसिं पयच्छेइ ।। १९८४ ॥ जं संसाररहस्सं, उचियं जं जुब्वणस्स रम्मस्स ।। उवविसइ जं अणंगो, छेया वनंति जं चेव ।। १९८५ ।। जं जम्मंतरसंचयअणनसामन्नपुनपरिणामो । निय तवविक्कयपुव्वं महंति मुणिणो वि जं के वि ।। १९८६ ॥ सिमंतिणीहि ताहिं, परूढ-पिम्माहिं रम्म-रूवाहिं । तं दुहलेसविमुक्कं अणुहवइ इमो सुरय-सुक्खं ॥ १९८७ ।। अह देविसमाएसा सुरेण सिट्ठम्मि चंदचूडेण ॥ वुत्तं तम्मि असेसे चलिओ कणयद्धओ राया ।। १९८८ ॥ अनिलचलवेजयंती-संतज्जिय- वरविहारहसमूहा ॥ घंटारव-संतासिय-दिसागइंदा गइंदा य ।। १९८९ ॥ अरिमण-विहियधसक्का पायक्का वेग-विजियरेवंता ।। रंगंताय तुरंगा चलंति सह तेण नरवइणा ॥ १९९० ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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