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________________ रयणसारकहा ३७३ न व परिचएण अहवा, भएण अहवावि अहव खयरम्मि । पिम्मा भावेण इमा न कि पि पडियं पिया तस्स ॥ १९३९ ।। संपइ सयं विउत्ता, एसा समयंतरम्मि मं रमणं ।। मन्निस्सइ त्ति तेणं सरिया कामकरी विज्जा ॥ १९४० ।। विज्जा माहप्पेणं, तावसरूवं करित्तु तं कन्नं । निच्चं समालवंतो, कित्तियकालं गमइ खयरा ॥ १९४१ ॥ ठाणंतरम्मि पत्ते केण वि कज्जेण तम्मि नयरम्मि । दोलामारूढेणं, तावसकुमरेण तं दिट्ठो ।। १९४२ ।। तुह पुरओ नियचरियं, कह इमो जाव ताव खयरो वि ॥ हरिऊण इमं पत्तो, रहनेउरचक्कवालम्मि ।। १९४३ ।। मूत्तूण इमं मणिमयमंदिरसिहरम्मि जंपए सुयणु ! ।। मह वयणं पि न जच्छसि जंपइ सह तेण कुमरेण ।। १९४४ ।। तह वि हु न किंपि जंपेमि मज्झ मन्नेसु सुयणु ! संबंधं । अनह तुज्झ अज्जेव य कुवियकयंतो अहं पत्तो ।। १९४५ ।। सा आह न हि धणेणं, कयावि न वि हुंति रम्मपिम्माणि ।। अवराणि ताणि वत्थूणि , जाणि लब्भंति विहवेहिं ।। १९४६ ।। अह वालतालकालं , करवालं कड्डिऊण सो खयरो ।। जंपइ सुमरसु देवं इठें कालो तुहं पत्तो ।। १९४७ ।। पुण चितइ सासंको, कुवलयदललोललोयणि तरूणि ।। मुत्तूण इमं मज्झ वि पाणपरित्ताण संदेहो ॥ १९४८ ॥ मूढेण मए ता किं अया किवाणीयमेयमारद्धं ।। मयसंजीवणवल्ली, धुवमेसा रक्खणिज्ज त्ति ।। १९४९ ।। तन्नो कोसे खग्गं, खिवित्तु कामकरीए विज्जाए ।। नरभासं तं हंसिं काउं सो पंजरे खिवेइ ।। १९५० ।। अमयरसपसरनिब्भर कुल्ला तुल्लाए महुरवाणीए ।। पइदिणमातूणं, तं कलहसिं समालवइ ।। १९५१ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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