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सिरिपउमप्पहसामिचरिय
कय नयर-सार-मोसा गिण्हिय आभरणरयणसंभारं । नग्गोह-साहि-मूले तक्करपरिसा तहिं पत्ता ॥१६४४।। विभयंति जाव दव्वं विभायति य कप्पणाए ते तिन्नि । ताव पयंपइ थेरी धीरा नग्गोह-सिहर-गया ॥१६४५॥ मज्झ वि चउत्थभागो कज्जो निय जीविएण जइ कज्जं । अन्नह एसा निब्भरविद्देसा मारइस्सामि ॥१६४६।। उड्ढं पलोयमाणा अवयरमाणिं निरिक्खिउं थेरि । कय रक्खसि-संकप्पा चत्तधणा तक्करा नट्ठा ॥१६४७।। गंतूण दूरदेसं मिलिया जंपति हंत पावाए । थेवेण चेव मक्का घणं धणं जीयमाणाणं ।।१६४८॥ दिव्वे मह अणकूले जलणपवेसो धणाय संजाओ । इय चिंतइ सा थेरी उत्तरीया तरुवराहिंतो ॥१६४९॥ गहियाभरणसमूहा पणरवि वडविडविसिहरमारूढा । जाए पभायसमए गच्छइ निययम्मि गेहम्मि ॥१६५०॥ कय पणिवाया पत्तेण हिट्ठचित्तेण पच्छिया वयइ । जलणेण गया सग्गं लहंति एयारिसं विहवं ॥१६५१ ।। अह विहवबद्धबद्धी जंपइ सा गोमई वि किं अंब ! । अहमवि लहेमि विहवं विसामि जलियं जइ हयासं ॥१६५२।। सा आह अहं थेरा लहेमि थेवं विसेमि जइ जलणं । तरुणतरट्टी तत्तो लक्खगुणं लहइ निब्भंतं ॥१६५३॥ थेरीए कहिय विहिणा लद्धा सा गोमई महावद्धा । जलंणम्मि पविट्ठ च्चिय पत्ता छारत्तणं सहसा ॥१६५४।। जामिणि विरामसमए मग्गं निय पिययमाए पिच्छंतो । पुत्तो इमाए वुत्तो मुद्ध ! न दद्धा घरं पंति ॥१६५५।। जं चिय मूढा पावहय चिंतहि कज्ज परस्स । तं निय पाविण पडिहयह आवइ ताह घरस्स ॥१६५६॥
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