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रयणसारकहा
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लुद्धाए गोमईए पत्ता एत्थे वणत्थपत्थारी । वसुसारधणिसुएणं निसुयमिणं रयणसारेण ॥१६५७॥ तेणमलुद्धमणेणं विणयंधरसूरिपायमूलम्मि । गहियं परिग्गहमाणं विहियं माणं धणाईणं ॥१६५८।। रयणाण लक्खमेगं हतं सवत्राण मज्झ दस लक्खा । धण-रुप्प-कणाइणं वि एवं संखाकया तेण ॥१६५९॥ धण-धण्णाण पमाणाइक्कमणे तह य सव्व कवियाणं ।
दुपयाईणं वत्थूखित्ताणं कणयपमुहाणं ॥१६६०॥ बंधणकरणेण तहा भावेणं गब्भओ य जोयणओ । दाणेण तहा पंचमवयस्स पंचेव अइयारा ।।१६६१ ।। इय अइयारविसद्धं सव्वस्स परिग्गहस्स परिमाणं । काऊण सया निम्मल-सम्मत्तो कुणइ गिहिधम्मं ॥१६६२॥ समयंतरम्मि भमिरो समाण-वय-वेस-मित्त-संजत्तो । रोलंबरोलनामं रम्मारामं इमो पत्तो ॥१६६३॥ कयसंगीय पिव अलिउल-रवेहि कसमेहिं चारुहासं वा । आराम पिच्छंतो कीलागिरि-सिहरमणपत्तो ॥१६६४।। सच्चवइ सो वि तत्थ य गीयारव-सवण-पत्तमयमिहुणं ॥ किन्नर-मिहुणं हय-सिर-नर-देह-दिव्व-नेवच्छं ॥१६६५॥ दळं अदिट्ठपव्वं तं मिहणं नियमणेण विम्हइओ। सो आह सोवहासं पिच्छह पिच्छह महच्छरियं ॥१६६६॥ जइ ताव दिव्वरूवो अभिरूवो एस तो महं किहण । तरयस्स विगयसोहं चहोडियं एत्थदेहम्मि ॥१६६७।। अहवा हयवयणाओ न इमो देवो न चेव माणुस्सो । किं पण तिरिओ को वि ह दूरे दीवंतरे जाओ ॥१६६८॥ नेयं पि जुत्तिजुत्तं नर-कर-पय-दसणाउ किंतु इमं । केण वि सुरेण विहियं एवंविह वाहणं निययं ॥१६६९॥
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