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रयणसारकहा
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कारइ तं घरकम्मं मम्मं पयडेइ थोवदोसे वि। तक्कय-कज्जमकज्जं मनइ अवमन्नए निच्चं ॥१६०५।। निय जणणि--दक्ख-संभार-तविय-हियएण तेण नियभज्जा । गोवद्धणेण भणिया थेरीए करेसि किं राडि ?॥१६०६।। सीमंतणीण भत्ता गरू य सामी य देवया अहवा । तो तस्स पूयणिज्जा बहूण पज्जा विसेसेण ॥१६०७।। इय तेण वारिया वि ह वारियवामा करेइ सा कलहं । सह वसमई तह जह सत्त-सयज्जीउ निव्विना ॥१६०८॥ मंडं मंडावित्ता दासि व्व करेइ गेह-कम्माणि । जह वसमई तहा वि हु कह वि न कलहं इमा चयइ ॥१६०९॥ तत्तो बह बह-दूसह-वयणानलजलिय-देहाए । नीससिय वसमईए पत्तो वत्तो सनिब्बंधं ॥१६१०॥ तुह दइया गुरु-मच्छर-भरिया कवि-कच्छुवल्लि-सारिच्छा । वच्छ ! न ह देहदाहं विरमइ हत्थं पयच्छंती ॥१६११।। तो पुत्त ! मज्झ वि निव्वेय-कारण-जीवियव्वेण । संपइ अलाहि कट्ठाणि देहिज्जइ होसि मह पत्तो ॥१६१२।। सो वि निय-घरणि-कक्कस-भासा संजाय-निब्भरविसाओ । नियमाणसम्मि मंतिय आमं ति पयंपए तयण ! ।।१६१३।। गंतूण भणइ कज्जं करेइ कट्ठाण मग्गणं जणणी । सा आह रोसनिब्भर-फुरंत-दंतच्छया दइयं ॥१६१४।। तुज्झ जणणीए जग्गा कट्ठा न गहम्मि सति गोहूमा । जइ सग्ग-मग्ग-गमणं मणम्मि कह वि ह वसइ तिस्सा ||१६१५॥ जइ इच्छइ सा चइडं असार-संसार-दुक्ख-संभारं । जइ महइ तियणम्मि वि सारय-ससि-दित्ति-समकित्तिं ॥१६१६॥ ता पविसेउ हुयासण-जाला-कलियाणि हंत ! कट्ठाणि । अज्ज चिय आसि मए, संगहिया दारु-पत्थारी ॥१६१७।।
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