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________________ ३४६ सिरिपउमप्पहसामिचरियं गुणगणकाणण-दहणो परिहरणिज्जो सया लोहो ॥१५९३।। सिद्धिगइमूलमंगलमसमागुणाण सासयं कोसं । संहरिय सयल-दोसं संतोसं कुणसु किं बहुणा ? ॥१५९४॥ भव-संभव-दुक्खाणं काऊण खयं महेसि जइ सुक्खं । तत्तो तण्हावल्लिं उम्मूलस मूल-पज्जतं ॥१५९५।।। उक्तं चश्लोकार्द्धनैव तद्वक्ष्ये यदक्तं ग्रन्थकोटिभिः । तृष्णा च संपरित्यक्ता प्राप्तं च परमं पदम् ॥१५९६।। इच्छापरिमाणवयं, निरीहचित्तो करेइ जो परिसो। इह-परलोय-सुहाई सो पावइ रयणसारो व्व ॥१५९७॥ रयणसारकहा - रणरणिय-रयण-तोरण-किंकिणिगण-रावमहलियदियंता । रयणविसाला नयरी सुरपुरसरिस्सा इहं अत्थि ॥१५९८।। अरि-करि-हरिसारिच्छो सारय-ससि-किरण-सरिस-जस-पसरो । अनघ-भयंग-नरिंदो तत्थ नरिंदो समरसीहो ॥१५९९॥ रूवेण रई बद्धीए भारई तह सईस रिद्धिए । देवि व्व चित्तरूवा, तस्स पिया चित्तलेह त्ति ॥१६००। तत्थ पुरे वसभारो, सिट्ठी बहुदीव-विविह-ववहारो । भज्जा वसंधरा से, ताण सओ रयणसारो त्ति ॥१६०१ ।। इत्तो य - तत्थत्थि सत्थवाहो वसमइ-वसदत्तपत्तभावेण । सुपसिद्धो गोवद्धणनामो अभिरामगणगामो ॥१६०२॥ दिव्ववसा अइकक्कस-भासा बहकलहकंदली सरीसा । सोहग्गगव्वउद्धर-देहा सा गोमई भज्जा ।।१६०३।। सत्थाहे वसदत्ते कीणास-निवास-गोयरं पत्ते । सह सासुयाए कलहं कारइ सा गोमई निच्चं ॥१६०४॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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