________________
३४४
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
अहवा पियजलवाहसमागमहरिसियहिययाए गयणलच्छीए । फडियवयस्स पडियं धणहमिसा दीसए अद्धं ॥१५६९॥ पच्छंतस्स य रनो उच्छलिया तच्छ-पबलपवणेण । संहरियं तं धणहं मेहेण समं खणद्धेण ॥१५७०॥ परिभाविय नियहियए राया पेच्छेह वत्थुवित्थारं । खणदिट्ठ-नट्ठरूवं सासइ रूवं जणो मुणइ ।।१५७१ ।। वाणासणेण धारासारं वरिसंतओ वि जह हरिओ। मेहो पवणेण तहा हीरइ धीरो वि कालेण ॥१५७२।। पजलंत-जलण-जाला-माला-संतत्त-पारय-सरिच्छं । दिव्वं पि विसय-सुक्खं का चिंता मणुय-सुक्खेसु ॥१५७३॥ जलहिम्मि सिरिसयासे मन्ने कल्लोलमंडली सहिया । चवलत्त-महिज्जित्ता नहम्मि इह दंसए विज्जू ॥१५७४॥ अरविंद-विहिय-वासा इंदिदिरविंद-मंदिरा मने । तह सिक्खावइ दक्खा तं पि ह जल-चंचलं जायं ॥१५७५॥ ता इंद-धणुह-सरिच्छं लच्छी-रूवाइ-वत्थु-वित्थारं । अवउज्झिउं असारं सारं गिण्हेमि पव्वज्जं ॥१५७६॥ इच्चाई चिंतयंतो विरत्तचित्तो खणेण नरनाहो । सह विविहकिलेसेहिं समूलमुम्मूलए केसे ॥१५७७॥ हरिणी जम्माहिज्जियसुएण परिमणिय सयलमुणिकिरिओ । पत्तेअबुहो जाओ अणंतकित्ती महीनाहो ॥१५७८॥ कमलावई सुसीमा, पमुहं अंतेउरं नरिंदस्स । कुमरा वि के वि तइया, पव्वइया केवलिसमीवे ॥१५७९।। सो घोरबंभचेर, पालिंतो विविह-तिव्व-तव-चरणं । कणमाणो उप्पाडइ, जयपयर्ड केवलं नाणं ॥१५८०।। भवियार-विंद-विंदं, पडिबोहिय केवलेण नाणेण ।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org