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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
सो धूमकेउदेवो पुणरवि पत्तो नियच्छिउं कुमरं ।। सविसेसनिद्धदिट्ठी ऊहापोहं कुणइ विविहं ॥१५४३।। समरिय हरिणीजम्मं पयडो होऊण जंपए कमरं । मज्झ भवंतरदइया होहिसि ते कहस जं कज्जं ॥१५४४॥ कुमरो जंपइ सुरवर ! जिणदव्वविणासगो वि संसारे । पावइ अणंतदुक्खं किं भणिमो भवणघाइस्स ? ॥१५४५।। जिणदव्वं जिणभवणं जिणबिंबं जो विणासए पावो । को नाम नाम गिण्हइ तस्स महापावकारिस्स ? ॥१५४६।। तम्हा विविहविहारे करेस परिहरस भीमरायम्मि । वेर तस्स विहारे विग्घविणासी हवसु निच्चं ॥१५४७।। सो तियसो तं सव्वं तहेव निम्मवइ मणिय परमत्थो । गरुयाण वयणमित्तं कल्लाणं जीवलोयस्स ॥१५४८।। भीमनराहिवधूया सुसीमनामा निरूविउं कुमरं ।। हरिसियहियया सव्वं वृत्तत्तं साहए रनो ॥१५४९॥ एसो स-ताय-कुमरो जेणाहं जोइ-रक्खसाहितो । जीविय-निरविक्खेणं दक्खेणं रक्खिया तइया ॥१५५०॥ रना ससीमकन्ना दिना कमरस्स विम्हियमणेण । परिणयण-विहि ताणं पसत्थ-दियहम्मि संवत्तो ॥१५५१॥ सिरिदेवीए कमलावई वि कमरस्स अप्पिया तत्तो । सो कित्तियं पि कालं अइवाहइ ताहि परियरिओ ॥१५५२॥ नियजणणि-जणय-दंसण-समूसओ कहवि भीमनरनाहं ।
आपुच्छिय संचलिओ सुसीम-कमलावई सहिओ ॥१५५३।। मणिचूल-सिरीसहिओ मणिरयण-विमाण-नियर-परियरिओ। नियपुर-रम्मुज्जाणे सो पत्तो तक्खणा कुमरो ॥१५५४।। आराम-मज्झ-निम्मियपासायसिरम्मि संठिओ राया । संजायकोउहल्लो, जाओ दठूण सुर-निवहं ॥१५५५।।
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