SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनंतकित्तिकुमरकहा मग्गइ तमं पि संदरी ! तो एस बला विहिय य सव्वस्सं । दइयं हरिही पाणे पुण हरिही मज्झ तह विरहे ॥१५०४॥ तं सणिय पिहिय सवणा चिंतइ चित्तम्मि सा इमं बाला । दोससयकोससाला नृणमिणं चेव मह रूवं ॥१५०५॥ दइस्स य सीलस्स य संपत्तो एत्थ ताव पज्जतो । दुह-निवह-दुग्ग-दुग्गइगमणं जम्मंतरे होही ॥१५०६।। इय चिंतती पत्ता असोयवणियाइपाणचायत्थं । उब्बंधणकरणमणा पासं सा कुणइ कंठम्मि ॥१५०७।। निम्मलसीलपभावा सासणदेवी हवित्तु पच्चक्खा । जंपइ अप्पविघायं वच्छे ! मा कणस दहजणयं ॥१५०८॥ जइ जीवियनिरवेक्खा रक्खसि सीलं जिणिंदपनत्तं । तत्तो केवली पासे पव्वज्जं गिण्ह निरवज्ज ॥१५०९।। आमंति तीए भणिए नीया उज्जाणसमीवसरियस्स । केवलिमणिणो पासे सासणदेवीए सा बाला ॥१५१०॥ विहिपुव्वं पव्वज्जं पडिवज्जिय केवलिस्स पासम्मि । सामन्नं सा पालइ पवत्तिणी पायमूलम्मि ।।१५११ ।। विविह-तव-चरण-निरया कसायलेसं पि सा विवज्जती । विहियाणसणा मरिउं सोहम्मे सुरवरो जाओ ॥१५१२।। तत्तो सा चविऊणं अणंतसेणस्स नरवरिदस्स । पुत्तो अणंतकित्ती जाओ संपुनपुनेहिं ॥१५१३॥ . सो वि हु मयंकराया हरिणिं नाऊण गहिय पव्वज्ज । पच्छा पच्छायावं करेइ विविहं स चित्तम्मि ॥१५१४।। समयंतरम्मि केण वि केवलिणा बोहिओ इमो सम्म । समणोवासगधम्मे जहत्थ एवं पवज्जेइ ॥१५१५।।। हारि विहारे विविहे, पडिमा अप्पडिम-रयणमइयाओ । निम्माविय मरिऊणं, सो सोहम्मे सुरो जाओ ॥१५१६॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy