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अनंत कित्तिकुमरकहा
अणवरयगहियपउमो, कुमार ! पउमद्दहो एसो || १४३०|| हरयंतरालदेसे, अरिट्ठ-वेरुलिय- पमुह - रयणमयं । सा सयमेयं पउमं, मह लीलामंदिरं कुमरं ॥ १४३१ ।। अठुत्तरं सहस्सं, इमस्स सरिसाणि मूल - परिहीए । वत्थाहरण-विलेवण - भंडार - समाणि पउमाणि ॥१४३२ ॥ बाहिरपरिहीसु पुणो, वररयणमयाणि लक्खसंखाणि । सामाणिय-महयरिया, अणियवई पमुह - पउमाणि ॥। १ ४३३ ।। इय रिद्धि - समुदयस्स य, सव्वस्स सामिणी अहं चेव । सिरि नामा जा लोए, कमलनिवास त्ति सुपसिद्धा । ।।१ ४३ ४।। इय पउमम्मि मए सह कुमार ! सुरलोय - विसय- सुक्खाणि । अणुहवसु वरिसलक्खे परियरिओ तियसविलयाहिं ॥१४३५ ।। पयडंति जीए कज्जे सुरा य असुरा य विविहचाडूणि । सुरसुंदरिपरियरिया सयंवरा तुज्झ सा अहयं ||१४३६॥ मणिणो वि नियं मोणं जिस्सा रूवं निरूविउं सहसा । मुंचति सुहयसेहर ! सयंवरा तुज्झ सा अहयं ॥ १४३७ ।। भुवणं पि जीए कज्जे दुरंतवावारवाउलं भमइ । देहेण वि विहवेण वि सयंवरा तुज्झ सा लच्छी ॥१४३८ ॥ तव्वयणगहियतत्तो तत्तो कमलं पयंप कुमरो । करभोरू ! कहं जुग्गो मणुस्स मित्तो अहं तुज्झ ॥१४३९ ॥ ल-मुत्त - कलिल - कलसं मह देहं सेय-सलिलदुप्पिच्छं । कप्पूर - पूर - सरिया सहेसि कहि तस्स दुग्गंधं ॥ १४४० ॥ किं कलहंसी वायससंबंधं महइ का सराभिगमं ? | किं भद्दजाइकरिणी सुरतरुणी महइ किं मणुयं ? ।।१ ४४१ ।। कमला जंपइ तत्तो जियमारकुमार ! भणसु मा एवं । किं जाइमित्तदोसा मणुया सव्वे वि सारिच्छा ||१ ४४२ ।।
मल -
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