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________________ अनंतकित्तिकुमारकहा ३१९ चलिओ पभाय-समए निमित्तनिच्छइयवत्थुसंपत्ती । पत्तो तं चेव सरं ववसाय पराण किं दूरं ॥१२५२।। पिच्छइ अच्छजलभरपूरियगयणग्गमग्गवित्थारं । अविलक्खियपरपारं तं कुमरो पालिसिहरत्थो ॥१२५३॥ तं चिय सियसयवत्तं परिमलउग्गारवासियदियंतं । कलहंस-कोंच-सारस-रहंग-सारंग-परिकलियं ॥१२५४॥ विज्जाहरी विलासाभिहाणमयमाणसलिलवित्थारं । दळं अदिठ्ठपव्वं पउमसरं चिंतए कमरो ॥१२५५॥ अमयमयं सलिलभरं गिण्हिय मूलेहि पायवा मन्त्रो । छायाछलेण पच्छा अवइन्ना एत्थ तियसि व्व ॥१२५६॥ पच्चोणीए पेसइ पहियजणाणं समीरणं पढमं । अह ते पिच्छियवियसियकमलेहि वियासए अच्छी ॥१२५७॥ तयणु परिरंभत्थं वित्थारइ वीचिनिचयनियबाहू । कलहंसकलरवेहि सा गयवत्तं पि पुच्छेइ ॥१२५८।। सत्था तुच्छ-जलेहिं तयण सिणाणं तहेव निम्मवइ । सहयारपमुहतरुवरफलेहिं भोयणविहिं तत्तो ॥१२५९।। इय समयपरिचियाण वि पहियाणब्भागयं कणंतेणं । मनेइ इमेण सरसा उत्तमपरिसा इयं निच्चं ॥१२६०।। मत्तवणहत्थि-जूहं एत्तो गिण्हेइ सलिलसंभारं । तीरंतरिम्मि इत्तो सीहकिसोरा वि चिट्ठति ॥१२६१ ।। इत्तो उण हरिणउलं सलिलं गिण्हेइ जायवीसंभं ।। अकयविहा वा वाहा इत्तो चिट्ठति वीसंता ॥१२६२।। जलदेवया वि इत्तो सिणाण मणहं कणंति वीसत्था । एत्तो पंथियलोया तण्हं छेयंति सच्छंदं ॥१२६३॥ अवनमवित्राया विविहा चिट्ठति पाणिसंघाया । एयस्स अहो पिच्छस गंभीरत्तं विसालत्तं ॥१२६४॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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