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________________ सिरिपउमप्पहसामिचरियं नूणमिमीए महप्पा सत्थाहो उठ्ठिओ निसीहम्मि । देहट्टिई कणंतो पवाहिओ जलहि-मज्झम्मि ।।१२१३।। ता कित्तिय-दियहेहिं मज्झ वि एसा करिस्सए नासं । जा निवई सत्थाहं मुंचइ सा मज्झ कह होही ? ॥१२१४।। इय विहिय निच्छओ वि हु तिस्सा चरिएण कंपिरो एसो । पडु-चाडु-पयडण-परो गमिस्सए कित्तियं कालं ॥१२१५॥ इत्तो य सत्थवाहो पवाहिओ तीए जलहिमज्झम्मि ।। पाविस्सइ किच्छेणं फलहं भव्वु व्व जिणधम्मं ॥१२१६॥ सो तेण पाविएणं महल्ल-कल्लोल-पिल्लिओ घोरं । पारावारं तरिही अपार-संसारमिह भव्वो ॥१२१७।। सिंहलदीवं पत्तो चिंतिस्सइ हंत ! केरिसं जायं । नवपिम्मरम्मचित्तो अहयं पि पवाहिओ तीए ॥१२१८॥ वंचिज्जइ नियसामी दिज्जइ जीयं पि किज्जए जिस्सा । कज्जे गरुयमकज्जं हा इत्थी सा वि विहडेइ ॥१२१९।। जं चित्ते चिंतेउं जं न वि सुविणे वि पिच्छिउं सक्का । लीलावईण लीलावावारो तं पि कज्जम्मि ॥१२२०॥ हत्थेण गाढगहिया, जा किर पारयरस व्व विहडेई । को नाम वामनितं, निययं मन्निज्ज तं विबुहो ॥१२२१ ।। इय चिंतिऊण चित्ते, विरत्त-चित्तो गुरूण पयमूले । दक्खो दिक्खं सहसा, गिहिस्सइ गहियपरमत्थो ॥१२२२ ।। ताणं तं पि ह वयणं, सिंहल-दीवम्मि दिव्वजोएण । वच्चिस्सइ जं अहवा, संकइ तं चेव पावेइ ॥१२२३॥ तत्थूजाणपएसे, विहवं विलसंतयाणि सच्छंदं । धम्मं झियायमाणं, तं पिच्छिस्संति मणिनाहं ॥१२२४॥ किं देवयाए किं वा, एसो भवियव्वयाए इह नयरे । मक्क त्ति चिंतयंतो, खामिस्सइ तं सकंठो वि ।।१२२५।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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