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अनंतकित्तिकुमार कहा
राया संकियहियो बहूणि तालाणि जाव ताडित्ता । तत्थागच्छइ पिच्छइ ता तं निद्दाइयं बालं ॥ ११४८ ॥ जग्गविया सा सणियं, धुत्ती जिंभायमाण - मुह - कुहरा । कर-कमल-मलिय- लोयण - जुयला उट्ठेइ कह कह वि ॥११४९ ॥ राया वि वत्थजुयलं, अन्नं अप्पित्त ताणि वत्थाणि । रयणुज्जोय-पयासे, निएइ निहुए सदिट्ठीए ॥११५०॥ न य मत्थिय पयमित्तं, पेच्छइ वत्थम्मि पुव्वकयबिंदु | ववगयसको तत्तो, विलसइ सह तीए सिच्छाए ॥११५१ ॥ तं किं पि छेयचरियं, छेयाणं जेण भुवण - पच्चक्खं । विहियं तेहिमसच्चं, नज्जइ सच्चाउ अब्भहियं ॥ ११५२ ॥ मासम्मि वइक्कंते, नियभत्तारं सया वि अणुरत्तं । रायविरायमइयं, पिच्छंती भणइ सत्थाहं ॥ ११५३॥ सलिल-निहि-सलिल-लंघण - सहाणि - वहणाणि कुणसु पउणाणि । संहर नियववहारं, परदेस जेण गच्छामो ॥ ११५४।। तह जत्तं विनत्तो, राया जइ हुज्ज तुज्झ स पसाओ । तो मग्गिज्जसु मग्गे, अणुगमणं निययभवणस्स ॥११५५ ॥ अइकायरो वि तिस्सा, गिराए काऊण सो अवट्ठभं । परतीरगमणजत्ता, जुग्गं सामग्गियं कुणइ ॥११५६॥ अविरलगलंतनित्तो, पत्तो नरनाह - पाय-पासम्म | विनत्तिं कुणइ इमं, सामिय ! मह आगओ लेहो ॥११५७|| दिवंतरम्मि माया-पियरो मह विरहसंभवं दुक्खं । अइदुसहं वि सहता धरति किच्छेण जीयं पि ॥ ११५८॥ तु पाय-पसाणं एत्तियमित्ताणि मज्झ वरिसाणि । वक्कताणि सुहं चिय संपइ गच्छामि नितं ॥ ११५९ ॥ ता झत्ति हरियचित्तो राया वज्जरइ तुज्झ जइ गाढं । निब्बंधो ता गच्छसु इह अत्थे किं वयं भणिमो ? ||११६० ॥
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