________________
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
दुरठिओ व इत्थ ठिओ व सहिओ व दक्खिओ अहवा । केण वि परिहविओ वा नियकज्जं कहस मह चेव ॥११६१ ।। सो आह नाह ! न किमवि खूणं मह किंतु कित्तियं मग्गं । सयमणगम्मस जेणं मह कित्ती हवइ परदेसे ॥११६२।। रना वि हु पडिवनो कारइ सव्वं पि वहणसामग्गिं । मण-नयण-पवणवेग पूरावइ वहणनिउरुंबं ॥११६३।। पत्ते पसत्थलग्गे रायं विनविय सयलजणसहिओ । चलिओ समुद्दतीराभिमुहं सो पवरसत्थाहो ॥११६४|| रायं चलियं नाउं सा वि ह भूमीघराउ निग्गंतं । सुक्खासणमारूढा चलिया सत्थाह नियडत्था ॥११६५।। जंपती सह रना एत्थ वसंतेण मज्झ नाहेण । जं नाह ! किमवि विहियं पडिकूलं खमसु तं सव्वं ॥११६६॥ तह पाय-पसाएणं समज्जियासेसविहव-वित्थारो । विहिय समीहियकज्जो एसो गच्छइ नियनयरे ॥११६७।। कइया वि संभरिज्जसु एवं सव्वंगसुंदरायारं । छेयाण नामगहणावसरे तं नाह ! मह दइयं ॥११६८।। इच्चाइ जपिरीए तीए निवइस्स सत्थवाहस्स । तिन्नि वि सहासणाई पत्ताणि समद्दतीरम्मि ॥११६९।। उद्दिसिय सलिलनाहं सा जंपइ एस सत्थवाहस्स । जत्ता समए मंगलरावं निम्मवइ गज्जंतो ॥११७०।। भंगर-तरंगमाला-मज्झ-ट्ठिय-सुत्ति-संपडो जलही । विहिय करंजलिबंधो नज्जइ अब्भागया गमणे ॥११७१ ॥ फटुंत-सत्ति-संपड-वियड-तडक्खित्त-सत्ति-उक्केरो । सत्थाह-गमणसमए दत्तचउक्को व्व पडिहाइ ॥११७२।। चिंतइ चित्ते राया होही नण मज्झ संदरी एसा ।। तिल-तस-ति-भागमित्तं पि जेण पिच्छेमि न विसेसं ॥११७३।।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org