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अनंतकित्तिकुमारकहा
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राय-समागम-समए, गच्छइ सो निययमंदिरे पच्छा । तेहि विलसेहिं सत्ता, सा असइसिरोमणी रमणी ॥१०९७॥ दिवसंतरम्मि तिस्सा, परपमुह-पयत्थ-सत्थ-वित्थारा । नामग्गाहं तेणं, पयासिओ चित्तपडिलिहिओ ॥१०९८।। तव्विरहमसहमाणा, गयम्मि रायम्मि घग्घरी सहियं । हय-चिहर-चय-विणिम्मियतंतं चालेइ अइदीहं ॥१०९९॥ कयसंकेओ एसो, तत्थागच्छेइ पइदिणं धुत्तो । सा उण कमसो जाया, धत्ती तत्तो वि अब्भहिया ॥११००। सा विनाय पयत्था, जंपइ मह राय-वाडियं सयलं । नियभवणे नेऊणं, दंससु मा होस भयभीओ ॥११०१॥ अइनिब्बंधे विहिए, नीया निययम्मि मंदिरे तेण । जाल-गवखंतरिया, निएइ निवइं गयारूढं ॥११०२॥ रणझणिर-कणय-कंकण-कलरव-वायाल-बाहुनालाहिं । उक्खित्त-चामराहिं, वीइज्जंतं मयच्छीहिं ॥११०३॥ सिरिधरियमेहउंबरच्छत्तं वरवंदिविहिय जय सदं । गलगज्जिमुहल-मयगलगलंतमयसित्त-महिवलयं ॥११०४॥ माऊर-छत्त-अंतरिय-तरणि-तावेहिं मउड-बद्धेहिं । सामंत-सहस्सेहिं, वरियं इंदं व तियसेहिं ।।११०५।।
(त्रिभिर्विशेषकम्) पुण भूमीहर-पत्ता, चिंतइ चित्तम्मि कयचमक्कारा । हंत इमो नरनाहो, विलसइ सव्वत्थ सच्छंदं ।।११०६॥ आजम्मं भूमीहरे, मं पुण पक्खिवइ निरयसरिसम्मि । तो मह किमेस भत्ता, जम्मंतरवेरिओ अहवा ॥११०७॥ अंतेउरीओ अवरा, कया वि पिच्छंति भुवणजण-निवहं । आजम्मं भूमीहरे, हा अहयं इत्थ पक्खित्ता ॥११०८॥
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