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मनतकित्तिकुमारकहा
दिव्वं अदिट्ठपुव्वं, राया गिहित्तु हारिणं हारं । दाणपसायं काउं, तं सत्थाहं विसज्जेइ ॥ १०७१ ॥ मणि-रयण-हेम-कंदल-मुत्ताहल - पमुह - विविहवत्थूणं । सो विक्कयं कुणतो, अज्जइ विहवं जहिच्छाए ॥१०७२॥ तह तेण तम्मि नयरे, निरग्गलकलाइ - अज्जिओ विहओ । कोडीसराण मज्झे, जह लीहं लहइ सो पढमं ॥ १०७३ || तह सयलकलाकलिओ, अविकलसेवाए सो महिनाहं । आराहइ जह रन्नो, मणम्मि अनुन संवसइ ॥ १०७४ || पन्नंगणा पडाया, कामपडाया सया वि विहवेण । अप्पायत्ता विहिया, चमरधरा तेण नरवइणो ॥ १०७५ ।। मणिरयण-नियर-निम्मिय - मणेण - मणहारि-भूमियावद्धं । कारवियं धवलहरं, पुरम्मि तेणं वसंतेणं ॥ १०७६ ।। समयंतरम्मि पुट्ठा, कामपडाया अणंगदेवेण । जाणसि किमेस राया, परम्मुहो रज्जकज्जेसु ॥१०७७॥ उस्सूरम्मि सहाए, आगच्छइ तक्खणा वि गच्छेइ । दीसइ न किं पि पयडं, इत्थीजूयाइयं वसणं ॥ १०७८ ।। कामपडाया जंपइ, अहमवि समं न किंपि जाणेमि । सुद्धते पुणवत्ता, एसा सव्वत्थ वित्थरिया ॥ १०७९ ॥ आजम्म- ' - भूमि - मंदिर - विहिय - निवासए पवणधूयाए । नवजुव्वणाइराया, संपर विलसेइ सिच्छाए ||१०८० ॥ तो मन्त्रे सा बाला, तिलोय अब्भहिय-सारसोहग्गा । अत्थाणसंठियस्स वि, चित्तम्मि चमक्कए रनो ॥१०८१ ॥ जं अत्रेण न पत्तं, न य दिट्ठ तह सयावि जं छन्नं । कामीण किमवि तं चिय, रम्मं पि पडिहार || १०८२ ॥ इय तिस्सा वयणेणं, कंठयकविकच्छुयाए लग्गु व्व । सो कामकच्छुरो वि हु करेइ आयारसंवरणं || १०८३ ।।
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