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________________ अनंतकित्तिकुमारकहा ३०३ अन्नं कलाकलावं जाणइ सव्वं पि धणहवेयाई । इत्थीचरियस्स पुणो लवमवि देवो न याणेइ ॥१०४६॥ देवाण दाणवाणं मंतं मंतंति अत्तणो अनं । इत्थी चरियम्मि पुणो ताण वि मंता कहिं नट्ठा ।।१०४७।। जालंधरेहि भूमीहरेहि विविहेहिं अंगरक्खेहिं । निवरक्खिया वि रमणी दीसइ पब्भट्ठमज्जाया ॥१०४८।। उक्तं च -- कल्लोलादपि बुबुदादपि चलद्विधूद्विलासादपि, जीमूतादपि मारुतादपितरत्तार्योर्ध्ववपक्षादपि । चित्रं चित्रमयं चला त्रिभुवने किं श्रीन ते शेमखी । नैवं किं खलसंगति न न नन स्त्रीजातिरस्यै नमः।।१०४९॥ तं चेवपुनवंतं, पुरिसं मनेमि जस्स रमणीओ । पुत्रोदएण सुद्धं सिलं सीलंति आजम्मं ॥१०५०॥ कयचित्तचमक्कारो, राया अत्थाणमंडवाहितो । उठ्ठित्त इमं चिंतइ, एगते नियय-हिययम्मि ॥१०५१।। जह तेण वित्थरेणं, महिलाचरियं बुहेण परिसाए । सयलबुहाण समक्ख, अक्खियमेयं तह च्चेव ॥१०५२॥ पारावारस्स परं, पारं गच्छंति निययकल्लोला । जह तह महिलाचरियं, तीइ च्चिय मुणइ जइ हिययं ॥१०५३।। मन्ने इमं पियाई, इत्थी संसग्गदोसउ मेरं । मंचइ तो सव्वेसिं संसग्गमहं निवारिस्सं ॥१०५४॥ पहईसरस्स कस्स वि, तद्दिणं जायं कमारियं अहयं । परिणत्ता भूमिहरे, पक्खविय महासई काहं ॥१०५५॥ इय निच्छिऊण रना, भणिया सव्वे वि निययसामंता । जा का वि तम्ह धूया, होही सा मज्झ कहियव्वा ॥१०५६॥ समयंतरम्मि जाया, कन्ना पवनाभिहस्स नरवईणो । सो साहइ आगंतुं, जयंतसेणस्स निय पहुणो ॥१०५७|| Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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