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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
सो वंतरो वि कुमरी, कुमराणं दिव्वहारमेगेगं । दाऊण पुव्व भणिए, नेऊणं मुयइ ठाणम्मि ॥१०३३।। कुमर-महकमल-निग्गय-धम्मामय-पाण-चत्तकूरत्तो । पत्तवरधम्ममग्गो सो गच्छइ वंतरो तत्तो ॥१०३४॥ कुमरो वि धम्मचक्कं पणमइ नाभेयपाय-सुपवित्तं । बाहबलिरायनिम्मियमणंतदरियाण संहरणं ॥१०३५॥ तत्थज्जाणपएसे सरेहि विज्जाहरेहि उप्पन्ने । केवलनाणे मणिणो पिच्छइ विहियं महामहिमं ॥१०३६॥ भत्तिब्भरनिब्भरंगो विहिणा पणमेइ केवलिं कुमरो । दठूण तस्स रूवं अच्चंत विम्हिओ जाओ ।।१०३७।। तं पच्छइ पत्थावे केणं वेरग्गहेउणा नाहं । नवजव्वणम्मि विहियं गिरिगरुयमिणं तवच्चरणं ॥१०३८॥ सो आह सिहरि-संठिय-विहार-धय-सरिसवत्थ-वित्थारो । संसारु च्चिय कारइ विवेयवंताण वेरग्गं ॥१०३९।। तह वि ह जइ निब्बंधो तो हं साहेमि सयलवत्तत्तं । वेरग्गकरं निययं अवहियहियओ निसामेसं ॥१०४०।। मणिमयविहाररम्मा विसालसालेण सोहिउं वंता ।। नयरी अत्थि वीसाला जहत्थ नामा इहं भरहे ॥१०४१ ॥ अगणीयकलाकलावो निच्चं अक्खंडमंडलो अत्थि । तत्थ य जयंतसेणो राया रायाओ अब्भहिओ ॥१०४२ ।। सो पच्छइ विबहजणं कयाविअत्थाणमंडवासीणो।। किं किं कलाण मज्झे नाहं जाणेमि अवियप्पं ॥१०४३॥ एगो य छंदवाई विबुहो जंपेइ नत्थि भुवणे वि । सा का वि कला जं न वि देवो जाणेइ पडिपुत्रं ॥१०४४॥ तं सवणमूलसूलं वयणं गहिऊण सणिय परमत्थो । अन्ने विबहो जंपइ तत्तं छंदेण परिमुक्कं ॥१०४५॥
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