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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
भालयल-तिलय-रेहा नासा वंसग्ग-संगया-जिस्सा । रेहइ तिलोय-विजयदत्तं पत्तं व स्वेण ॥१००७।। जोई वि कुसुमचंदण-पमुहेहिं वंतरस्स पडिमाए । काऊण विविहपूयं उवविट्ठो झायए झाणं ॥१००८॥ इत्थंतरम्मि कुमरो चिंतइ चित्तम्मि हंत ! पाविट्ठो । झाऊण कूरमंतं हुणिस्सए कनयं एसो ॥१००९॥ तो केण उवाएणं एवं रक्खेमि कनयं अहयं । हं नायं हं जिस्सं परविज्जाछेयणिं विज्जं ॥१०१०॥ अह तीए पउत्ताए अप्पडिहय-चक्कि-चक्क-सरिसाए । जोइस्स तस्स मंतक्खराणि दो तिन्नि छिनानि ॥१०११॥ पम्हसियं पि वियाणिय मंतं सो धिट्ठ-ट्ठपाविट्ठो । संखहियमणो झायइ पनं अठ्ठत्तरं सहसं ॥१०१२॥ उग्गं खग्गं घित्तुं जंपइ कन्नाए संमुहं जोई । समरस इठं देवं बाले ! पज्जंतकालम्मि ॥१०१३।। कन्ना जंपइ सरणं मरणे पत्तम्मि मज्झ पढमजिणो । दुहियाणमसरणाणं नराण निक्कारणो बंधू ॥१०१४।। एत्थंतरम्मि कुमरो, पयडो होऊण हक्कए जोइं । रे पाव ! पाविसि फलं नियस्स पावस्स इत्थेव ॥१०१५॥ जे नारि पुरिसं वा, मूढा निहणंति सिद्धिमीहंता । ते पासंडियवेसा, रक्खस-रूवा मणेयव्वा ॥१०१६॥ भयविम्हिय-मयहियओ, जोई दळं उवट्ठियं विग्घं । कनं मुत्तुं कुमरं पइ, चलियं गहियकरवालो ॥१०१७॥ अह कूर-वाणमंतर-पडिमा, पयडित्तु घोरतर-रूवं । जोई पयघाएणं, हणिउं निक्कासए विवरा ॥१०१८॥ नाउं कवियं मंतं, जोई सव्वंग-भंगरसरीरो । काऊण भत्त-चायं, मरिउं तो रक्खसो जाओ ॥१०१९॥
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