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अनंतकित्तिकुमारकहा
भत्तितरंगिणि-विलसिर - तरंगमाला - समाइवाणीए । सुर-असुर - खयर-कय-पय- सेवं देवं थुणइ एवं ॥९६८॥ मन्ने सिद्धि-वहू-कडक्ख-लहरी - लक्खाण पुत्रोदया । भव्वाणं चवलत्तमुज्झिय चिरा एसो मणो वानरो ॥९६९॥ आराहेइ सया वि लंछणछलं काऊण जं निच्चलो । तं वंदे अभिनंदणं जयगुरुं तेलुक्कचूडामणिं ॥ ९७० ॥ भत्ती जस्स जणणिं, गब्भगयस्सा वि पइदिणं सक्को । अभिनंदइ तं भुवणाणंदणमभिणंदणं वंदे ॥ ९७१ ।। सिद्धत्था जणणी, तुह संसग्गेणं न केवलं जाया । भुवणं पितुज्झ जोगा, सिद्धत्थं संपयं जायं ॥ ९७२ ॥ एसो अंजणसेलो, दिट्ठो वि हु मोह - तिमिर - नियरं पि । अमयं जणं व सामिय ! हरेइ तुह पाय- सुपवित्तो ॥ ९७३ ॥ तुह मयनाहि - विलेवण - मणवरय- सिणाण-सलिल-पल्हत्थं । मन्ने अंजणसेलं, जहत्थ नामं सया कुणई || ९७४ ॥ इय थोऊण कुमारो, नीहरिओ बाहिरम्मि भवणस्स । नियइ विहारं तं चिय, उज्जोइय दसदिसाचके ॥ ९७५ ॥ चिंतइ य इमो मन्ने, रयणा जे के वि भुवणमज्झम्मि । ते पायं इहइं चिय, भवणे आरंभया विहिया ॥ ९७६ ॥ तुंगतमस्स इमस्स य, हारि - विहारस्स तुंगयापारं । दुक्खेण कह वि नज्जइ, सुपुरिस - महिमाए पारं व ॥९७७॥ अणिमिसनयणाउ इमा, मणिमय- पंचालियाउ रेहति । तियसवहू विव पत्ता, हारि - विहारावलोयत्थं ॥ ९७८ ॥ इय जाव तं विहारं कुमरो वनेइ ताव दिणनाहो । संहरिय किरणजालो अंबरायल - सिहरमारूढो ॥ ९७९ ॥
कोलाहलच्छलेणं सउणा साहंति सउणलोयाणं । रविणो विचलं लच्छिं कलिऊण जणम्मि उवयरह ॥ ९८० ॥
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