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सो जंगमकप्पतरुं, कुमरं पावित्त नंदणवणस्स । कप्पतरुमंडियस्स वि, नज्जइ विजया य चलिउ व्व ॥ ९५५ ॥ कुमरो वि सेलकाणण - सरिया - सय - सहस - संगयं वसुहं । पिच्छंतो गच्छंतो, विम्हिय - हियओ विचिंते ॥ ९५६ ॥ जाईसरस्स विज्जाहरस्स, असुरस्स सुरवरस्सऽहवा ।
कस्स विकज्जं, मए वि होही तओ हरिओ ॥ ९५७ ॥ अहव भवंतरवेरी, हरियमहं सायरम्मि पक्खिवि । भवउ व जं वा तं वा, पज्जंतं जाव पिच्छेमि ॥९५८॥ अह सो नग्गोहरू - कमसो अंतरिय - विविह- गिरी - नियरो | पत्तो अंजणसेले, अंजण - घण - तिमिर - भर - सरिसे ॥९५९॥ सिहरिस्स तस्स सिहरे, फालिह - मणि- निम्मियस्स भवणस्स । रहिओ दुवारदेसे, संजायसमु व्व सो विडवी ॥ ९६० ॥ कुमरो वि भवण - काणण - सरसी - सरि - सिहर - विवर - पहाणं । अवलोयणाय सहसा अवयरिओ तरुवराहिंतो ॥९६१ ॥ मणि-भवण- - दार-संठिय-सरसीजल5- सुद्ध - पाणि-पय-कमलो । बहु-पयडपाडिहेरावलोय - निच्छइ य जिणभवणो ॥९६२॥ आसन्न-रम्म-काणण-संगहिय - सुगंध - कुसुम - पब्भारो । अइरम्म-भवण- दंसण- विम्हय - विम्हरिय - नियनयरो ॥ ९६३॥ पडिसिद्धावरकज्जो, सज्जो जिणपूयणाइकज्जेसु । भत्तितरंगियहियओ, पविसइ जिणभवणमज्झम्मि ||९६४ || दूराउ दूर - निरसिय- बहिरंतर - निविड - तिमिर - पब्भारं । अभिनंदणस्स पडिमं, अप्पडिमं नियइ मणिमइयं ॥ ९६५ ॥ जय जय सद्दं भणिरो, पविसिय मज्झम्मि पवरकुसुमेहिं । पूएइ जिणं सपुलइय-कवोल - मूलो सुगमूलं ॥९६६॥ तिपयाहिणाइपुव्वं, विहिणा अभिनंदणं च जिननाहं । भुवनजण - मणाणंदणमभिवंदइ भत्ति - संपन्नो ॥९६७॥
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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