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________________ अनंतकित्तिकुमारकहा २९५ राय ! विसाय-पिसायं, तत्तो परिहरसु मं विसज्जेसु । तित्थाण वंदणत्थं, जेणं गच्छामि सिच्छाए ॥९४२॥ तइंसण-तिसिएणं, स्ना अ विसज्जिओ वि सो जाइ । संतो विहिय-परत्था कया वि पच्छा न चिट्ठति ॥९४३॥ राया रम्मं पि पुरं, परिहरिय वसेइ बाहिरुज्जाणे । मणवल्लहजणविरहे, अमयं पि विसं विसेसेइ ॥९४४।। एत्तो य तं कुमारं, हरियकरिंदो महंत-वेगेण । गच्छंतो कमरेणं पहओ मट्ठीहि मम्मम्मि ॥९४५।। सो तेहिं पहारेहि, विवरिओ पेरिओ व्व कंतारं । उद्देसियविसेसेणं, वेगेणं जाइ वणहत्थी ।।९४६॥ चिंतइ चित्ते कुमरो, न हु सज्जो एस महुरगीएणं । दंडेण न वा नेवयमग्गेण नत्रेण खलसरिओ ॥९४७।। चिंतंतु च्चिय एवं, मग्गे गयणग्ग-लग्ग-सय-साहं । निज्झायइ नग्गोहं, रुद्धोभय-मग्ग-पविभागं ॥९४८॥ दंसण-समसमयं चिय, सो हत्थी तत्थ चेव संपत्तो । कमरो वि लद्धलक्खो, लग्गो नग्गोह-साहाए ॥९४९।। हत्थी वि कुमरमुक्को, कोलो होऊण नहयले नट्ठो । गरुएहिं अहव मक्का, हवंति लहया किमच्छरियं ? ॥९५०॥ मूलाओ थूलमूलप्पाडण-कय-विविह-कडयडारावो । सुरमायाए तरु वि हु, उप्पइओ नहयले सहसा ॥९५१॥ गहिऊण पुरिसरयणं, पच्छा गच्छंत-सिन्न-भीउ व्व । गच्छइ वेगेण तरूसारं गहिऊण चोरो व्व ॥९५२॥ मा एसो साहसिओ, दहाइ दह्ण झ त्ति निवडेही । इय दिव्वपभावेणं, पढममिमो उड्ढमप्पइओ ॥९५३॥ एसो तह दूरगओ, समीव-दीसंत-तारया-नियरो । जह गिरिणो करिसरिसा, करी वि दीसंति किरिसरिसा ॥९५४॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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