________________
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
सूइ व्व पिसुणजीहा, गुणमयमवि विधए सहसा ॥२४॥ कइया वि कत्थ कहमवि, मुहत्तमित्तं पि उदयपत्तो वि । केउ व्व अहो ! पिसुणो भयावहो भुवणलोयाणं ॥२५॥ सक्कारसहस्सेहिं वि लवमवि पिसुणो न किज्जए सुयणो । अमयमयअंकपालीगओ वि कलुसो च्चिय कलंको ॥२६॥ विहि-विलसियाण खलभासियाण तह महिलकूड-चरियाणं । मणवंछियाण पारं वनइ जइ कह वि सव्वत्रू ॥२७॥ एवं कयत्थिएणं, अहवा अब्भत्थिएण पिसुणेण जो अस्थि मज्झ कव्वे, सो दोसो तो कहेयव्वो ॥२८॥ जिणनाह-नमण-संभव-मंगल-संहरिय-विग्घ-पब्भारो । सिरिपउमप्पह-चरियं, कय-अच्छरियं भणिस्सामि ॥२९॥ जइ वि जोइसराण वि, जिणिंद-चरियम्मि नत्थि सामत्थं । तह वि बला वि पयट्टइ, मं जिणपयपंकए भत्ती ॥३०॥ जह केसिमुत्तमाणं, संते वि जिणिंद-बिंब-निउरंबे ।। अवरवर-बिंब-कारणवावारो निप्फलो नेय ॥३१॥ तह पउमप्पह-पहुणो, संते वि हु अवर-चरिय-संदोहे । नहि निप्फलो ममा वि हु इमम्मि चरियम्मि वावारो ॥३२॥ रिसहेसरस्स तेरस, बारस संतिस्स नव य नेमिस्स । दस चेव पासपहुणो, सत्तावीसं च वीरस्स ॥३३॥ अवसेसजिणिंदाणं, कहिया समयम्मि तिन्नि तिन्नि भवा । इय पउमप्पहचरियं भवतियसहियं कहिस्सामि ॥३४॥ सुरगिरिकलियाकलिओ, नहयल-कज्जलकवालसंजुत्तो दिवु व्व जंबूदीवो इहत्थि लवणोयजलतिल्लो ॥३५॥ नहयलतमाल-तरुणो, आवालं पिव असेसमेहाणं ।। अक्खयभंडारं पिव, लवणो उयही तओ बाहिं ॥३६॥ बाहिं तस्स य धाइयसंडं उदंडविविह-वण-संडं ।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org