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अनंतकित्तिकुमारकहा
तद्दिणमारंभेउं, गब्भं धारेइ रयण - निउरंबं । रोहणधर व्व समए, सुयं पसूया लडह - देहं ॥ ८३९॥ वद्धावणाइपुव्वं, रजा सुविणाणुसारओ दिनं । पुत्तस्स तस्स नाम 'अणंतकित्ति त्ति सुपसिद्धं ॥ ८४०॥ रत्नो महूसंवेहिं, वड्ढंतो सो वि सुंदरावयवो । सक्खी काऊण गुरुं, कला - कलावं कलइ सयलं ॥८४१ ॥ तस्स य सह सिद्धाओ, हविंसु उप्पत्तियाइ - बुद्धीओ । सुर - गुरुणोवि समत्थो, सो कुमरो पत्त - दाणम्मि ॥८४२ ॥ आबाल - कालओ च्चिय तस्स य सिद्धंत - तत्त - परमत्थो । परिणमिओ सव्वंगं, महुररसो सक्कराए व्व ॥ ८४३॥ जिय- सुर - रूवं रूवं, निरुविउं तस्स कामरागंधा । सुरसुंदरी वि मोहं, कुणंति बहुणा किमन्त्रेण ? ||८४४|| अत्थाण - सहासीणे, नरनाहे अवरवासरे पुरिसो । एगो सनारिजुयलो, पडिहार-निवेइओ पत्तो ||८४५॥ राय - प्पणाम - पुव्वं, उवविट्ठा ते वि उचिय - ठाणम्मि । रना पसाय - पुव्वं, भणिया विन्नवह निय-कज्जं ॥८४६ ॥ ताणं एगा विलया, जंपइ मह देव - देवसमरूवो । भत्ताएसो जणयावमाणिउं निग्गओ स पुरा ||८४७।। एएण समं अहमवि, चलिया भत्तार - भत्ति - उज्जुत्ता । कमसो इह सो पत्तो, अज्ज निसाए मए सद्धिं ॥ ८४८|| वसिओ दुवारवासिणि- देवी भवणम्मि एस वीसत्थो । जाए पभाय- समए, दिट्ठा एसा वि पाविट्ठा ॥८४९ ॥ मह पणा सह विविहं, विलसती तो मए समारद्धो । कलहो इमाए सद्धिं, न य एसा निज्जिया कह वि ॥८५० ॥ तो काऊण पसायं, छिंद विवायं वियारणा पुव्वं । सच्चासच्चविवेओ, रायायत्तो जए सयले ॥८५१ ॥
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